गोवर्धन पर्वत केवल एक पहाड़ नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की अनंत करुणा और भक्ति के चमत्कार का जीवंत प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन और गोकुल के समीप स्थित यह पवित्र पर्वत आज भी वही दिव्यता समेटे हुए है, जहाँ स्वयं श्रीकृष्ण ने इसे अपनी छोटी ऊँगली पर उठाकर इंद्र के अभिमान को मिटाया था।
गोवर्धन पर्वत की कथा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का संदेश भी देती है।
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गोवर्धन पर्वत की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, एक समय गोकुलवासी इंद्रदेव की पूजा किया करते थे ताकि वर्षा ठीक से हो।
परंतु जब श्रीकृष्ण ने यह देखा, तो उन्होंने कहा — “हमें इंद्र की नहीं, गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो हमारी गायों को चारा, जल और आश्रय देता है।”
गोपों ने कृष्ण की बात मानी और पर्वत की पूजा की। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने प्रचंड वर्षा भेज दी।
तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर पूरे गाँव को सात दिन तक शरण दी।
अंततः इंद्रदेव ने अपनी गलती स्वीकार की, और उस दिन से गोवर्धन पूजा का आरंभ हुआ — जो आज भी दीपावली के अगले दिन श्रद्धा से मनाई जाती है।
गोवर्धन पूजा और पर्व का महत्व
गोवर्धन पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और ईश्वर के प्रति धन्यवाद का उत्सव है।
इस दिन भक्तजन अन्नकूट (विभिन्न प्रकार के व्यंजन) बनाकर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत को अर्पित करते हैं।
यह पर्व हमें सिखाता है कि असली भक्ति प्रकृति की सेवा और कृतज्ञता में निहित है।
मुख्य आकर्षण:
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गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा (लगभग 21 किलोमीटर)
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अन्नकूट महोत्सव
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दीपदान और भजन संकीर्तन
गोवर्धन परिक्रमा का आध्यात्मिक महत्व
हर वर्ष लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। माना जाता है कि यह परिक्रमा सात कोस (लगभग 21 किलोमीटर) की होती है, और इसे नंगे पैर पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है।
विश्वास है कि गोवर्धन जी की परिक्रमा से पाप नष्ट होते हैं और जीवन में समृद्धि, शांति और भक्ति का संचार होता है।
प्रमुख स्थान जो परिक्रमा में आते हैं:
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दानघाटी
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मुखारविंद
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राधाकुंड
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मनसी गंगा
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गोविंद कुंड
गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक संदेश
गोवर्धन पर्वत हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति कर्म और विनम्रता में है, न कि अहंकार में। श्रीकृष्ण का यह कार्य यह दर्शाता है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकृति के माध्यम से भी चमत्कार कर सकते हैं।
यह पर्वत आज भी भगवान की उपस्थिति का जीवंत प्रतीक माना जाता है — जहाँ हर कण में श्रीकृष्ण का वास है।
गोवर्धन पर्वत श्रद्धा, प्रेम और प्रकृति-भक्ति का ऐसा पर्वत है जो हमें जीवन की सच्चाई सिखाता है — सेवा, समर्पण और संतुलन।
जब हम अपनी प्रकृति, पशु, और धरती का सम्मान करते हैं, तो वही ईश्वर की सच्ची पूजा बन जाती है।
गोवर्धन पर्वत की यह कथा आज भी हमें याद दिलाती है —
“जो दूसरों की रक्षा के लिए आगे आता है, वही सच्चा भक्त है।”
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