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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा और इस व्रत का महत्व
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण का पूजन किया जाता है। पूजा के दिन व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। यहां पढ़ें वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा व महत्त्व।
वरुथिनी एकादशी
धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्णा से पूछा कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? उसकी विधि क्या है? और उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? तब श्रीकृष्ण ने अपने श्री वचनो से कहा कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी है, यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों का नाश करने वाली तथा भक्त को मोक्ष देने वाली है।
वरुथिनी एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्री कष्ण से युधिष्ठिर ने वरुथिनी एकादशी व्रत कथा के महत्व के बारे में बताने के लिए कहा। तब श्री कृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे संबंधित कथा है कि नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता का राज्य था। राजा मांधाता दानी, तपस्वी और धर्मात्मा था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी वहां पर एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा मान्धाता अपनी तपस्या में लीन रहा।
कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा मान्धाता को घसीटकर पास के जंगल में घसीट कर ले गया, जिसके कारण राजा की तपस्या भंग हो गई और वह घायल हो गए। राजा मान्धाता बहुत डर गए, मगर तापस धर्म के अनुकूल राजा ने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की और करुण भाव से अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना की। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने सुदर्शनचक्र से भालू को मार डाला। राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ।
राजा को दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! तुम्हारे पुराने कर्मों का फल तुम भोग रहे हो। ऐसे में तुम मथुरा जाकर वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखो और साथ ही मेरे वराह अवतार की पूजा करो। ऐसा करने से दुख दूर होंगे और सभी कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया।
अत: जो भी व्यक्ति शारीरिक कष्ट या भय से पीड़ित है उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करनीचाहिए। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। वरुथिनी एकादशी व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।
वरुथिनी एकादशी का महत्व
- वरुथिनी एकादशी व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करे तो उसको सौभाग्य मिलता है।
- वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
- कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है।
- वरूथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
कृपया ध्यान दें कि यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।
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