भारत की भक्ति परंपरा ने अनेक संतों को जन्म दिया, परंतु कुछ नाम ऐसे हैं जो युगों तक मन और आत्मा में गूंजते रहते हैं। संत तुकाराम ऐसा ही एक दिव्य नाम है — एक किसान, एक साधक, एक कवि, और अंततः पूर्ण भक्ता, जिन्होंने भक्ति को शब्दों में नहीं, जीवन में जिया।
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संत तुकाराम कौन थे?
संत तुकाराम (1608–1649) महाराष्ट्र के देहू गांव के एक महान संत और वारकरी परंपरा के अग्रदूत थे। साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने जीवन के कठोर संघर्षों — गरीबी, भूख और सामाजिक आलोचना — को भक्ति का माध्यम बना दिया।
उनके हृदय में भगवान विठोबा/विट्ठल के लिए जो अनन्य प्रेम जगा, वही भक्ति आगे चलकर पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बना।
अभंग — संत तुकाराम की सबसे अनमोल धरोहर
संत तुकाराम के भक्ति पद “अभंग” केवल कविताएँ नहीं, बल्कि आत्मा की चीख, प्रेम की अनुभूति और ईश्वर के प्रति समर्पण का अमृत हैं।
उनकी रचनाओं में:
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सत्य की निर्भीकता
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समाज सुधार का साहस
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भक्ति का गहन रस
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जीवन का वास्तविक दर्शन
बिना किसी भय या प्रचलित व्यवस्था के दबाव के प्रकट होता है।
उनकी भाषा सरल, लेकिन अनुभव अत्यंत गहरा — यही कारण है कि उनके अभंग आज भी सीधे हृदय को छूते हैं।
संत तुकाराम की भक्ति — प्रेम और साक्षात्कार का मार्ग
तुकाराम कहते थे —
“ईश्वर दूर नहीं है; जब अहंकार का पर्दा गिर जाता है, तब वही भीतर प्रकट हो जाता है।”
उनकी भक्ति के तीन मूल तत्व थे:
| भक्ति का तत्व | अर्थ |
|---|---|
| प्रेम | ईश्वर से कोई सौदा नहीं — केवल प्रेम |
| सत्य | मन, कर्म और जीवन में पूर्ण पारदर्शिता |
| समर्पण | कठिनाइयों में भी भरोसा, शिकायत नहीं |
उनके लिए भक्ति उत्सव नहीं, जीवन जीने का तरीका थी।
समाज के प्रति योगदान
संत तुकाराम ने:
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जाति-भेद और सामाजिक असमानताओं का विरोध किया
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अहिंसा और करुणा का संदेश दिया
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श्रम और सादगी को सम्मान दिया
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ईश्वर तक पहुंच को सभी के लिए समान बताया
उन्होंने धर्म को “ग्रंथ” में नहीं, मानवता में खोजा।
संत तुकाराम से आज के समय में सीख
आज की भागदौड़ और तनावपूर्ण जीवन में संत तुकाराम की शिक्षा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है:
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आध्यात्मिकता दिखावे से नहीं — अनुभव से आती है
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ईश्वर भक्ति केवल मंदिर में नहीं — हृदय में होती है
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जीवन कठिन हो, फिर भी भरोसा और कृतज्ञता न छोड़ें
उनके शब्द हमें याद दिलाते हैं —
“भक्ति वही है जिसमें स्वयं का मिटना और ईश्वर का खिलना हो।”
संत तुकाराम की आध्यात्मिक यात्रा हमें सिखाती है कि भक्ति पुस्तकें पढ़कर नहीं, प्रेम में पिघलकर आती है।
उनका जीवन संघर्षों के बाद भी समर्पण, विश्वास और ईश्वर प्रेम का साक्षात उदाहरण है।
आज भी उनके अभंग सुनते ही मन भावविभोर हो उठता है —
क्योंकि उनमें ईश्वर नहीं, ईश्वर का अनुभव बोलता है।
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