Maa Kamakhya Kavach – माँकामाख्या कवचम्
माँ कामाख्या सर्वसिद्धिदायक विद्या हैं। सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक विद्याओं में माँ भगवती कामाख्या विद्यमान हैं। इनकी तांत्रिक उपासना द्वारा मनुष्य सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धनैश्वर्य को प्राप्त करता है। कामाख्या कवच माँ कामाख्या का रक्षास्त्र है। इस महाकवच का नित्य पाठ एवं भोजपत्र पर निर्माण कर कण्ठ या भुजा में धारण करने से मनुष्य सर्वप्रकार की तांत्रिक शक्तियों एवं शत्रुओं से सुरक्षित रहता है, तथा माँ कामाख्या की कृपासिद्धि भी प्राप्त करता है।
कवच की 108 आवृत्तियां करना लघु सिद्धिकरण है। 1008 बार पाठ करने से मध्यम तथा कवच की 11000 आवृत्तियां करने से महासिद्धि प्राप्त होती है। महासिद्धिकरण सुयोग्य गुरु के संरक्षण में करना ही लाभकारी होता है।
यदि साधक माँ कामाख्या की साधना करने की इच्छा रखते हैं तो माँ कामाख्या की तांत्रिक साधना पुस्तक के अनुसार ही साधना करनी चाहिए|। शास्त्रों में सिद्ध कामिया सिन्दूर बहुत ही शुभ और शुद्ध माना गया है|
माँ कामाख्या कवच स्तोत्र संस्कृत में (Kamakhya Kavach)
ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्बृहस्पतिः स्मृतः |
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुप्छन्द इष्यते ||
विनियोगः सर्व्वसिद्धौ तंच शृण्वन्तु देवताः |
शिरः कामेश्वरि देवी कामाख्या चाक्षुषी मम ||
शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा |
कण्ठे पातु महामाया हृदि कामेश्वरि पुनः ||
कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः |
त्रिपुरा पाश्वर्योः पातु महामाया तू मेहने ||
गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम् |
जनुनीः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जंघयोः ||
महामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा |
केशे कोटेश्वरी पातु नासायां पातु दीर्घिका ||
( शुभगा ) दन्तसंघाते मातंग्यवतु चांगयोः |
बाह्वोर्म्मां ललिता पातु पाण्योस्तु वनवासिनी ||
विन्धयवासिन्यंगुलीषु श्रीकामा नखकोटिषु |
रोमकूपेषु सर्व्वेषु गुप्तकामा सदावतु ||
पादांगुलिपार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी |
जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्ठाभ्यन्तरेऽवतु ||
पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठरान्तरे |
सामिन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्व्विद्वन्तरेऽवतु ||
ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्व्वदा |
लकारः सर्व्वनडिषु ईकारः सर्व्वसन्धिषु ||
चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम् |
पूर्व्वस्यां दिशि चाग्नेय्यां दक्षिणे नैरृते तथा ||
वारुणे चैव वायव्यां कौवरे हरमन्दिरे |
अकाराद्यास्तु वैष्णवा अष्टौ वर्णास्तु मंत्रगाः ||
पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुद्भवविवृद्धये |
ऊर्ध्वाधः पातु सततं मान्तु सेतुद्वयं सदा ||
नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मंत्रगोचरे |
नवस्वरास्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः ||
वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम् |
नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च ||
तत् सेतु सततं पाता क्रव्याद्भ्यो मान्निवारकौ |
नमः कामेश्वरी देवीं महामायां जगन्मयीम् ||
या भूत्वा प्रकृतिर्नित्यं तनोति जगदायतम् |
कामाख्यामक्षमाला भयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां ||
श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुंकुमापीतवर्णाम् |
ज्ञानध्यानप्रतिष्ठा मतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या ||
मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विद्ध्यैरतिस्थाम् |
मध्ये मध्यस्थ भागे सततविनमिता
भावहारावली या लीला लोकस्य
कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्तरुपैकनम्रा ||
विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकर्त्री वरास्या |
नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्व्वेश्वरी नः ||
इति हरः कवचं तनुकेस्थितं शमयति व्यतिक्रम्य शिवे यदि |
इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः ||
इतीदं कवचं यस्तु कमाख्यायाः पठेद् बुधः |
सुकृत् तं तु महादेवी तनु व्रजति नित्यदा ||
नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्याद्भ्यो भयं तथा |
नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः ||
दीर्घायुर्बहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः |
आवर्त्तयन् शतं देवी मन्दिरे मोदते परे ||
यथा तथा भवेद् बद्धः संग्रामेऽन्यत्र वा बुधः |
तत्क्षाणदेव मुक्तः स्यात् स्मरणात् कवचस्य तु ||