नवरात्रि व्रत कथा (Navratri Vrat Katha In Hindi)
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। ब्रह्माजी से देवगुरू बृहस्पति ने नवरात्रि व्रत कथा और पूर्व समय में इस व्रत को किसने किया उसकी कथा सुनाने का निवेदन किया। ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी से कहा, “ हे बृहस्पते! मैं तुम्हे इस परम दुर्लभ और कल्याणकारी नवरात्रि व्रत कथा और इसका इतिहास सुनाता हूँ, तुम ध्यान से सुनना। बृहस्पति जी ने उतर दिया, “ हे प्रभु ! आप कथा सुनाइये मैं पूरे ध्यान से सुनुँगा।“
ब्रह्माजी ने कथा सुनाना प्रारम्भ किया और कहा, प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। बह प्रतिदिन माँ दुर्गा का हवन और पूजन किया करता था। माँ दुर्गा की कृपा से उसके घर एक कन्या ने जन्म लिया।
ब्राह्मण की पुत्री बहुत ही रूपवती,सुशील और गुणवान थी। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का नाम सुमति रखा। वो कन्या अपने पिता के घर वृद्धि को प्राप्त हुई। अपनी दिनचर्या के दौरान ब्राह्मण नित्य माँ दुर्गा का हवन और पूजन करता, उसकी कन्या भी नियमित रूप से वहाँ उपस्थित रहती। यह देखकर ब्राह्मण को बहुत प्रसन्नता होती।
एक दिन वो कन्या अपनी सहेलियों के साथ खेलने में इतनी मगन हो गई, कि उसे यह ध्यान ही नहीं रहा कि उसे हवन और पूजन के लिये घर पहुँचना है। अपनी पुत्री को हवन-पूजन के लिये ना आया देखकर, ब्राह्मण क्रोधित हो उठा। जैसे ही उसकी बेटी सुमति घर आयी तो उसे अपने पिता के क्रोध का सामना करना पड़ा।
उस ब्राह्मण ने क्रोधवश अपनी पुत्री से कठोर बचन कहे की, “तूने मेरी बेटी होकर पूजा का नियम तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया हैं। तुझे इसका दंड भुगतना होगा। मैं तेरा विवाह एक निर्धन कोढ़ी और कुरूप से करूँगा। उसके साथ जब तू दुखों का अनुभव करेगी, तब तुझे अपने अपराध का बोध होगा।“
अपने पिता की ऐसी बातें सुनकर सुमति ने अपने पिता से कहा, “पिताजी मैं आपकी बेटी हूँ, और आपके अधीन हूँ। आप मेरे लिए जो चाहे निर्णय ले सकते हैं। मेरे भाग्य में जो लिखा होगा मुझे वही मिलेगा। मनुष्य तो बहुत कुछ चाहता और सोचता है, परंतु उसे वही मिलता हैं, जो उसके भाग्य में विधाता ने लिखा होता हैं। मनुष्य को फल अपने कर्मों के अनुसार ही मिलता हैं। मनुष्य के वश में सिर्फ कर्म करना होता हैं, उसका फल ईश्वर के अधीन हैं।
अपनी बेटी की ऐसी बातें सुनकर उस ब्राह्मण का क्रोध और बढ़ गया। और उसने जल्द ही एक निर्धन कोढ़ी से अपनी पुत्री का विवाह करा दिया और उसे अपने घर से यह कहकर निकाल दिया, ‘ कि जा ले ले जो तेरे भाग्य में लिखा हैं, अब भोग अपने कर्मों का फल।
अपने पिता द्वारा किये गये इस व्यबहार और तिरस्कार से सुमति बहुत दुखी हुई। भटकते-भटकते अपने पति के साथ वो एक घने वन में पहुँच गयी।
रात्रि में उस भयानक वन में कष्ट सहते हुये उस कन्या ने दुखी होकर माँ दुर्गा का ध्यान किया। उस दुखी बेटी की पुकार सुनकर और उसके पूर्व जन्म के पुण्यों के प्रभाव से माँ भगवती उसके समक्ष प्रकट हो गई। माँ भगवती ने उससे कहा, मैं तुझपर प्रसन्न हूँ, तू जो चाहे वरदान माँग लें।
सुमति को कुछ समझ नही आया। उसने पूछा आप कौन हैं? और मुझ पर क्यों प्रसन्न हैं? तब माँ ने उसे अपना परिचय दिया और कहा कि, “मैं आदि शक्ति जगदम्बा हूँ। मैं ही प्राणियों के दुखों का नाश करती हूँ और उन्हे सुख प्रदान करती हूँ। मैं तेरे पूर्वजन्म में किये गये शुभ कर्म से अर्जित पुण्य के प्रभाव से तुझ पर प्रसन्न हूँ।“ सुमति ने माँ से पूछा, “हे माँ ! मैंने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था, जिसके फलस्वरूप मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हुई और आप मुझ पर प्रसन्न हुई।“
तब माँ दुर्गा ने उसे उसके पूर्व जन्म की कथा सनाते हुये कहा, ”पूर्वजन्म में तेरा विवाह एक निषाद से हुआ था, जो कि एक चोर था। एक बार वो चोरी करते हुये पकड़ा गया। जब उसे कैद की सजा हुई, तो अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए तू भी उसके साथ कारागार में चली गई। वहाँ तुम दोनों को भोजन इत्यादि कुछ भी नही दिया गया था।
उस काल में शारदीय नवरात्रि चल रहे थे। और परिस्थितिवश अंजाने में ही तुमसे नवरात्रि के नौ दिनों के निर्जल व्रत हो गये। उसी व्रत के प्रभाव से मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम आज जो चाहों वरदान माँग सकती हो। तब उस बेटी ने माँ दुर्गा को प्रणाम किया और कहा, “हे माँ दुर्गे! आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपा कर के मेरे पति के कोढ़ को दूर कर दीजिये।“ माँ ने कहा, “तथास्तु”। और उसके पति का कोढ़ ठीक हो गया और वो अत्यंत रूपवान हो गया।
यह चमत्कार देखकर सुमति ने माँ को बारम्बार धन्यवाद दिया और सच्चे मन से माँ दुर्गा की स्तुति करी। उसके भक्ति युक्त वचन सुनकर माँ दुर्गा ने प्रसन्न होकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। और कहा, “हे पुत्री! तुझे शीघ्र ही एक पुत्र प्राप्त होगा, वो बहुत ही बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय होगा। तुम उसका नाम उद्दालक रखना।“
माँ दुर्गा के आशीर्वाद को सुनकर सुमति की आंखों से अश्रु बहने लगें। उसने कहा, “हे माँ, मैं तो इस भयानक वन में अपने कोढ़ी पति के साथ अपने दुर्भाग्य को कोस रही थी। आपकी कृपा से मेरे सारे दुखों का नाश हो गया।
इस घोर विपत्ति के सागर से आपने ही मुझे बाहर निकाला हैं।“ तब माँ दुर्गा ने उससे कहा, “हे पुत्री! अभी तू मुझसे और भी वरदान माँग सकती हैं। जो चाहे माँग ले।“ तब सुमति ने कहा, “हे माँ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो और मुझे मनोवांछित वर देना चाहती हो, तो मुझे अपनी अनन्य भक्ति प्रदान करों। मुझे नवरात्रि के व्रत एवं पूजन की विधि बताइये जिसके पालन करने आप प्रसन्न होती हैं। मुझे उसकी विधि और फल पूरे विस्तार से बताइये।“
तब माँ दुर्गा ने सुमति को कहा, “हे पुत्री! मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने वाले नवरात्रि के व्रत का महात्म्य एवं पूजन की विधि मैं तुमसे कहती हूँ। तुम ध्यान से सुनना। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य समस्त पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करता हैं।
माँ दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।
व्रत की विधि – प्रात: नित्यकर्म से निवृत हो, स्नान कर, मंदिर में या घर पर ही नवरात्र में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा करनी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष लाभदायक है। श्री जगदम्बा की कृपा से सब विध्न दूर हो जाते हैं तथा सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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