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ॐ मंत्र जाप – ॐ मंत्र का अर्थ – ॐ का सही उच्चारण कैसे करें – ॐ मंत्र मैडिटेशन
ॐ ब्रह्म का प्रतीक है। ॐ ब्रह्म का नाम है और ब्रह्म सर्वोपरि है। ॐ मंत्र के जाप से वह प्रसन्न होता है। ॐ से ही इस सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है। ॐ एक पवित्र शब्द है। यह वेदों का सार है। ‘ॐ’ की ध्वनि सच्चिदानंद ब्रह्म को दर्शाती है। यह ध्वनि भक्त को आध्यात्मिक शक्ति, जोश और ऊर्जा से भर देती है। ॐ मंत्र मैडिटेशन को मंत्र ध्यान भी कहा जाता है।
ॐ मंत्र का अर्थ
ओम मंत्र तीन अक्षर A-U-M [अ+उ+म् ] से बना है। ‘अ’ – भौतिक दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है; ‘उ’ मानसिक और सूक्ष्म जगत और आत्माओं की दुनिया का प्रतिनिधित्व करता हैं; और ‘म्’ गहरी नींद की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है, वह सब जो अज्ञात है, बुद्धि की पहुंच से परे है। ॐ या ओम शब्द के तीनों अक्षर ब्रह्मा, विष्णु व महादेव का प्रतिनिधित्व भी करते है। ॐ जीवन, विचार और बुद्धि का आधार है। ॐ से ही सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है । ॐ सभी मंत्रों का आधार है। प्रत्येक मंत्र के प्रारंभ में ॐ का उच्चारण किया जाता है।
ॐ मंत्र दिव्य शक्ति से भरा है। यह बुद्धि को प्रखर करता है। ॐ जप या प्रणव साधना या ओम ध्यान – मंत्र योग का एक हिस्सा है और इसका अभ्यास उच्चतम आनंद की ओर ले जाता है। वह ध्वनि जो एक बहती हुई नदी द्वारा उत्पन्न होती है, ऊंचाई से गिरते हुए झरनों से उत्पन्न होती है, जो वर्षा होने पर उत्पन्न होती है, या जब आग लगती है या गर्जन होता है – यह सब ॐ ही है।
ॐ जप मूल रूप से ‘नाद योग’ का एक अंग है और इसे ‘प्रणव नाद’ भी कहा जाता है। प्रणव का अर्थ है प्रार्थना। सभी योग सत्र प्रणव नाद से प्रारंभ होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि योग के साधक को ॐ का जाप करना चाहिए। योग सत्र के शुरुआत में किया गया ॐ का जाप मन की स्थिरता को प्राप्त करने में मदद करता है, मन की चंचलता समाप्त हो जाती है, एकाग्रता बढ़ती है और आस-पास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है और शान्त हो जाता है।
ॐ का सही उच्चारण कैसे करें
- ॐ का उच्चारण करते समय, अक्षर अ, उ, और म् (जिनसे ॐ शब्द बना है), की निरंतरता बनाये रखनी होती है।
- ॐ के उच्चारण के लिए पहले पूर्ण श्वास लें और फिर श्वास छोड़ते हुए ॐ का उच्चारण करें।
- श्वास छोड़ने का लगभग ६०% ‘ओ’ (अ+उ) का जप करना चाहिए और शेष ४०% ‘म्’ होना चाहिए।
- ॐ का जप करते समय ऐसी कल्पना या भावना बनाये रखे कि ‘ओ’ शब्द का उच्चारण नाभि से कंठ तक हो रहा है; और ‘म्’ कंठ से भ्रूमध्य तक।
- जब जप पूरा हो जाए, तो कल्पना करें कि ‘ॐ’ भ्रूमध्य में स्थापित हो गया है।
ॐ मंत्र मैडिटेशन
- ॐ के ध्यान की साधना के लिए तैयार हो जाइए।
- किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएँ, जैसे कि पद्मासन, अर्ध-पद्मासन या सुखासन।
- रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- दायीं हथेली को गोद में नाभि के सामने बायीं हथेली पर रख देवें ।
- अपने नेत्रों को बंद कर लेवें और पूरे शरीर को आराम की स्थिति में ले आएं।
- तीन केंद्रों यानी नाभि, कंठ और भ्रूमध्य के बीच आप अआपकी पूरी सजगताबनी रहनी चाहिए।
- एक गहरी श्वास लेवें और ॐ का उच्चारण करना शुरू करें।
- पहला ओ३म् का उच्चारण जब पूरा हो जाये तो आंखें बंद करके शरीर में ॐ के कंपन की अनुभूति करते रहें।
- मानसिक रूप से ॐ का जप करते रहें और इस प्रकार उत्पन्न हुई दिव्य तरंगों की अनुभूति करते रहें।
निरंतर महसूस करें-ॐ ॐ सर्वव्यापी मैं हूँ ॐ
प्रकाश का सागर मैं हूँ-ॐ
एक अनंत मैं हूँ-ॐ
सर्वव्यापी, एक अनंत प्रकाश मैं हूँ-ॐ
सर्वशक्तिमान मैं हूँ-ॐ
सर्वज्ञ मैं हूँ-ॐ
सत-चित-आनन्द मैं हूँ-ॐ
सर्व पवित्रता मैं हूँ-ॐ
फिर से गहरी श्वास लें और ॐ का उच्चारण करें।
फिर से वैसी ही भावनाएं बनाये रखें जैसी की ऊपर बतलायी गयीं हैं।
अपनी सुविधानुसार प्रणव मंत्र का जाप दोहराएं।
प्रत्येक पुनरावृत्ति के बीच, ऊपर दिए गए सुझावों की जागरूकता और भावनाओं को बनाए रखें।
ॐ की साधना/जप जब समाप्त करना हो तो कुछ समय के लिए नेत्रों को बंद करके कुछ क्षणों के लिए ऐसे ही बैठे रहें।
अपनी पूरी सजगता अपने भ्रूमध्य पर टिका दीजिये।
ॐ के चिन्ह को भ्रूमध्य में देखने का प्रयास करते रहें।
अब एक-एक करके पहले अपने भौतिक शरीर के प्रति, फिर अपने श्वसन के प्रति और फिर अपने अपने आसपास के वातावरण के प्रति सजग हो जाएँ।
अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ें और फिर हथेलियों को अपनी आंखों पर रखें।
हथेलियों को घुटनों पर रखें और धीरे से आंखें खोलें।