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ऋणमोचक मंगल स्त्रोत के लाभ हिंदी अर्थ सहित
ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का नियमित पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। मंगलवार के दिन अगर आप ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ करते हैं, तो आपको कर्ज से मुक्ति मिलती है, और आपके आर्थिक संकट दूर होते हैं। ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ करने से पूर्व आप एक लाल आसन पर विराजमान हो जाएं, फिर हनुमान जी की पूजा करें। उसके बाद ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करें। यह पाठ आप प्रत्येक मंगलवार को या फिर प्रत्येक दिन भी कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मंगलवार के दिन शुभ मुहूर्त में इसका प्रारंभ करें।
ऋणमोचक मंगल स्त्रोत हिंदी में अर्थ सहित
श्री गणेशाय नमः ॥
श्री मङ्गलाय नमः ॥
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥
भावार्थ्:- हे मंगलदेव जी! आपके जो नाम शास्त्रों में बताये गए हैं, उनमें से पहला नाम मंगल, दूसरा नाम भूमिपुत्र जिनका जन्म पृथ्वी से उत्पन्न हुआ हो, तीसरा नाम ऋण हर्ता या कर्ज को हरण करने वाले, चौथा नाम धनप्रद या धन को देने वाले, पांचवा नाम स्थिरासन या जो अपने आसन के स्थान पर अड़िग रहने वाले,छठा नाम महाकाय या बहुत बड़े देह वाला, सातवां नाम सर्वकमावरोधक समस्त तरह के कार्य की बाधा को हटनाने वाले होते हैं।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥
भावार्थ्:-हे मंगलदेव जी! आपके नामों में आठवाँ नाम लोहित, नवा नाम लोहितांग, दशवा नाम सामगानां, कृपाकर अर्थात् सामग ब्राह्मणों के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि को रखने वाले, ग्यारहवा नाम धरात्मज या पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न, बारहवां नाम कुज, तेहरवा नाम भौम, चौदहवाँ नाम भूतिद अर्थात् ऐश्वर्य को देने वाले, पन्द्रहवां नाम भूमिनन्दन अर्थात् पृथ्वी को आनन्द देने वाले।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥
भावार्थ्:-हे मंगलदेव जी! आपके नामों में सोलहवाँ नाम अंगारक, सत्रहवाँ नाम यम, अठहरवा नाम सर्व रोगापहारक अर्थात् समस्त तरह की व्याधियों को दूर करने वाले, उन्नीसवाँ नाम वृष्टिकर्ता अर्थात् वृष्टि करने वाले या वर्षा के जल को कराने वाले, बीसवाँ नाम वृष्टिहर्ता अर्थात् वृष्टि को न कर अकाल डालने वाले और इक्कीसवाँ नाम सर्वकाम फलप्रद अर्थात् सम्पूर्ण कामनाओं के फल को देने वाले होते हैं।
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥
भावार्थ्:-जो मनुष्य मंगलदेव के उपर्युक्त बताए गए इक्कीस नाम का वांचन सच्चे मन से एवं विश्वास से करते है, उन मनुष्य को ऋण-कर्ज नहीं होता हैं और उन मनुष्य को धन की प्राप्ति जल्दी हो जाती हैं।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥
भावार्थ्:-हे अंगारक!आप की उत्पत्ती पृथ्वी के गर्भ से हुई हैं, आपकी आभा तो आकाश में कड़कने वाली दामिनी के समान होती हैं, समस्त तरह की शक्ति को धारण करने वाले कुमार मंगलदेव को नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥
भावार्थ्:-हे मंगलदेवजी! आपके मंगल स्तोत्रं का पाठ मनुष्यों को हमेशा अपने मन में किसी भी तरह के विकार से एवं अपनी पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था से नियमित रूप करना चाहिए। जो भी मनुष्य इस मंगल स्तोत्रं का पाठ करते हैं और दूसरों को सुनाते हैं, उनको मंगल से प्राप्त विपत्ति की थोड़ी सी पीड़ा नहीं होती हैं।
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥
भावार्थ्:-हे अंगारक अर्थात् अग्नि की ज्वाला से जलने वाले ! महाभाग अर्थात् पूजनीय हो, भगवान या ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य या प्रेम रखने वाले भौम आपको हम नतमस्तक होकर अभिवादन करते हैं। आप हमारे ऊपर किसी दूसरे से लिया हुआ उधार को पूर्ण करवा कर उस कर्ज को सदैव के लिए दूर कीजिए।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥
भावार्थ्:-हे मंगलदेव! मेरे ऊपर किसी दूसरे का कोई बकाया को समाप्त कीजिए, किसी भी तरह की व्याधि हो तो उसको भी दूर कीजिए। मेरी गरीबी को दूर कीजिए एवं अकाल मृत्यु को दूर कीजिए। मुझे किसी भी तरह का डर, क्लेश तथा मन में दुःख हो तो उसे भी हमेशा के लिए दूर कीजिए।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥
भावार्थ्:-हे मंगलदेव! आप बहुत ही टेढ़ी प्रकृति को, आपको सन्तुष्ट करना बहुत ही कठिन होता है, आप तो मुश्किल से प्रसन्न होने वाले भगवान मंगल देव, आप जब किसी पर अपनी कृपा की बारिश करते हो तो उसको समस्त तरह के सुखों-समृद्धियों से युक्त सार्वभौम सत्ता दे सकते हो, जब आप किसी पर नाराज होते हो तब उसकी सार्वभौम सत्ता को तहस-नहस करके समाप्त कर देते हो।
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥
भावार्थ्:-हे महाराज!आप जब भी किसी से अप्रसन्न होते है, तब किसी पर भी अपनी अनुकृपा दृष्टि से हीन कर देते हो। आप नाखुश होने पर ब्रह्माजी, इन्द्र देव एवं विष्णुजी के भी साम्राज्य-सम्पत्ति को नष्ट कर सकते हो फिर मेरे जैसे मनुष्य की तो बात ही क्या है। इस तरह के शौर्य से सम्मिलित होने के कारण आप सबसे शक्तिशाली तथा सबसे बड़े राजा हो।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥
भावार्थ्:- हे भगवन! आप से अरदास करता हूँ कि आप मुझे सन्तान के रूप में पुत्र प्रदान करे, मैं आपके द्वार पर आया हूँ आप मेरी मनोकामना को पूर्ण करे। मेरे ऊपर किसी तरह से भी किसी दूसरे से उधार लिया हुआ धन नहीं रहे, मेरे को दूसरों के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़े, मेरी गरीबी को दूर कीजिए, मेरे सभी तरह के कष्ट या क्लेश को दूर कीजिए और जो मेरे दुश्मन बन चुके हैं उनके डर से मुझे आप मुक्त कराएं।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥
भावार्थ्:-जो भी मनुष्य इन बारह श्लोकों वाले ऋण मोचन मंगल स्तोत्रं से भौम ग्रह की वंदना करते है, उन मनुष्य पर मंगल भगवान खुश होकर उस मनुष्य को बहुत ही अधिक मात्रा में रुपये-पैसों को प्रदान कराते हैं, जिससे वह मनुष्य इस पृथ्वी लोक में सबसे अधिक रुपये-पैसों से युक्त होकर समस्त तरह के सुख-सम्पत्ति को प्राप्त करके दूसरे कुबेर भगवान की तरह धन-संपत्ति का स्वामी बन जाता है और वह मनुष्य उम्र में अधिक होने पर भी हमेशा युवा बना रहता है उस पर आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं।
॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गल स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
ऋणमोचक मंगल स्त्रोत के लाभ
- कर्ज से छुटकारा पाने के लिए ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ बेहद फलदायी माना गया है।
- कुंडली में अगर मंगल ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहा है तो ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ करने से मंगल के दुष्प्रभाव कम होते हैं।
- मंगलवार के दिन अगर आप ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करने से आप किसी भी प्रकार के अर्थात आर्थिक संकट से भी मुक्ति पा सकते हैं।
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