शिव पार्वती विवाह की कथा – Shiv Parvati Vivah Katha
शिव पार्वती विवाह (Shiv Parvati Vivah) की चर्चा हर पुराण में मिलती है। भगवान शंकर ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। यह विवाह बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि सती के पिता दक्ष इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। हालांकि उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर सती का विवाह भगवान शंकर से कर दिया। पिता से मिले एक तिरस्कार की वजह से माता सती ने अग्नि कुंड में आत्मदाह कर लिया था जिसके बाद भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए थे और घोर वियोग में भगवान शिव ने तपस्या करनी शुरू की और वह तपस्या में लीन हो गए।
इसके बाद शिवजी घोर तपस्या में चले गए। सती ने बाद में हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। भगवान ब्रह्मा के वरदान की वजह से तारकासुर बेहद ताकतवर हो गया था और उसके आतंक की वजह से तीनों लोग थरथर कांप रहे थे। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसा उसे वरदान था। लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए।
परंतु पार्वती जी तो ठान चुकी थीं की वे शादी करेंगी तो बस महादेव से ही। इसी दृढ़निश्चय के साथ माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी। उनकी तपस्या से सभी जगह हाहाकार मच गया। बड़े बड़े पर्वत भी डगमगाने लगे। इन सभी बातों का जब भगवान शिव को स्मरण हुआ तब उन्होंने अपना ध्यान तोडा और अपनी आंखें खोली।
जब वे माता पार्वती के समक्ष उपस्थित हुए तब शिव जी ने उन्हें समझाया की एक तपस्वी के साथ जीवन व्यापन करना माता पार्वती के लिए आसान नहीं होगा।
लेकिन माता पार्वती ने तो जैसे ज़िद ही पकड़ ली थी के वे शादी करेंगी तो बस महादेव से। उनकी इस ज़िद को देख कर शिवजी माँ पार्वती से शादी करने के लिए मान गए और यह सुन कर न केवल माँ पार्वती, अपितु समस्त देव गण भी बेहद प्रसन्न हो गए।
माँ पार्वती के घर में इस शादी को लेके ज़ोरों – शोरों से शादी की तैयारी शुरू हो गयी थी। अब समस्या यह थी की भगवन शिव एक तपस्वी थे और उनके परिवार में कोई नहीं था। उन्हें शादी की रस्मों का कोई अंदाजा नहीं था। मान्यता यह थी की वधु का हाथ मांगने शादी के दिन वर को अपने परिवार के साथ ही आना पड़ता है लेकिन भगवन शिव के परिवार में तो कोई नहीं था।
ऐसे में महादेव ने भूत, पिशाच, नर, कंकाल, कीड़े-मकोड़े, दैत्य, पशुऔर चुड़ैलों को अपनी बारात में शामिल होने को कहा। भगवन शिव तो इस बात से भी अनजान थे की शादी के लिए तैयार कैसे होते हैं। भूत-पिशाच व डाकिनियों ने भगवान शिव के शरीर पे भस्म लगा दिया और हड्डियों की माला पहना दी जो की उनके घरों की परंपरा होती होगी।
अब भगवान शिव की बारात जिसमें भूत – प्रेत थे, नाचते गाते माँ पार्वती के द्वार पहुंची। सभी लोग जिसमें माँ पार्वती के घरवाले और देवता गण थे, हैरान रह गए। भूतों को देख कर घर की महिलाएं दर कर वहां से भाग गयी। महादेव को इस रूप में देख कर उनकी सास यानी माँ पार्वती की माँ ने उन्हें अपनी बेटी का हाथ देने से इंकार कर दिया।
माता पार्वती और शिव जी के विवाह की परिस्तिथियों को बिगड़ता देख पारवती जी ने महादेव से अनुरोध किया की वे उनके रीति रिवाजों के मुताबिक शादी करें। भोलेनाथ ने माँ पार्वती की इस प्रार्थना का मान रखा। पार्वती जी ने सभी देवताओं को उन्हें तैयार करने का निवेदन किया।
इसके बाद भोलेनाथ को दैवीय जल से स्नान कराया गया और उन्हें खूबसूति से फूलों की मालाओं से तैयार किया गया। जब भोलेनाथ पूरी तरह से तैयार होकर सभी के समक्ष आये तब सभी उनकी सुंदरता के गुणगान करते न थक रहे थे। जब उन्हें माता पार्वती की माँ ने देखा तो उन्हें अपनी बेटी की शादी शिव जी से कराने में कोई आपत्ति नहीं हुई।
ब्रह्मा जी की उपस्तिथि में विवहा का शुभारम्भ हुआ और दोनों ने एक दुसरे को वर माला पहनाई। ऐसे माता पार्वतीऔर शिव जी का विवाह संपन्न हुआ जिसे हम लोग शिवरात्रि के रूप में मनाते हैं और शिव जी की पूजा करते हैं।
शिव पार्वती विवाह स्थल (Shiv Parvati Vivah Place)
मान्यता है कि प्राचीन समय उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के पास स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर में भगवान विष्णु ने ही शिव-पार्वती का विवाह करवाया था। मंदिर में एक अखंड धुनी है। इस धुनि के संबंध में कहा जाता है कि ये वही अग्नि है, जिसके फेरे शिव-पार्वती ने लिए थे। आज भी उनके फेरों की अग्नि धुनि के रूप में जागृत है। इस मंदिर में स्थित अखंड धुनी के संबंध में मान्यता है कि ये तीन युगों से अखंड जल रही है। इसी वजह से इसे त्रियुगी मंदिर कहते हैं।
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