Table of Contents
माँ कूष्माण्डा देवी – मंत्र, कथा, आरती व महत्व (नवरात्रि चौथा दिन)
माँ कूष्माण्डा नवरात्रि के चौथे दिन (चतुर्थी) की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण इन्हें आदि शक्ति और आदि स्वरूपा भी कहा जाता है। माँ का तेज सूर्य के समान है और वे सूर्य मण्डल के भीतर निवास करती हैं। इस लेख में पढ़ें – माँ कूष्माण्डा की कथा, मंत्र, ध्यान, आरती और पूजा का महत्व।
माँ कूष्माण्डा कौन हैं?
-
स्वरूप: माँ दुर्गा का चौथा रूप
-
वाहन: सिंह 🦁
-
अन्य नाम: अष्टभुजा देवी (आठ भुजाओं वाली माँ)
-
अस्त्र-शस्त्र: कमंडल, धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा, कमल और जपमाला
-
महत्व:
-
भक्तों को सिद्धियाँ व निधियाँ प्रदान करना
-
जीवन में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा लाना
-
अंधकार और दुख दूर करना
-
इच्छाओं की पूर्ति करना
-
माँ कूष्माण्डा की कथा (कूष्माण्डा देवी की कहानी)
दुर्गा सप्तशती के अनुसार माँ दुर्गा ने जब सिद्धिदात्री रूप से भगवान शिव के बाएँ अंग से प्रकट होकर सृष्टि की उत्पत्ति की, तब उन्होंने सूर्य के भीतर निवास किया और वहीं से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का संचालन किया। माँ कूष्माण्डा ही एकमात्र देवी हैं जो सूर्य मण्डल में विराजमान रहती हैं और सम्पूर्ण सौरमण्डल को जीवन ऊर्जा प्रदान करती हैं।
माँ कूष्माण्डा मंत्र
संस्कृत:
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
हिंदी अर्थ:
हे माँ कूष्माण्डा, आपको नमन है।
माँ कूष्माण्डा प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
माँ कूष्माण्डा ध्यान मंत्र
संस्कृत
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
हिंदी भावार्थ
मैं माँ कूष्माण्डा का ध्यान करता हूँ, जिनके आठ भुजाओं में विविध अस्त्र-शस्त्र और जपमाला शोभित हैं। उनका स्वरूप तेजस्वी सूर्य के समान है और वे भक्तों की सभी कामनाएँ पूर्ण करने वाली हैं।
माँ कूष्माण्डा की आरती
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
माँ कूष्माण्डा की पूजा के लाभ
-
इच्छाओं की पूर्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति
-
जीवन में सकारात्मकता और सेहत
-
भय, दुख और अंधकार का नाश
-
आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा की प्राप्ति
-
सिद्धि और निधि की प्राप्ति
माँ कूष्माण्डा से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1. नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर: क्योंकि माँ ने अपनी मुस्कान से सृष्टि की रचना की और वे सूर्य मण्डल में निवास करती हैं।
प्रश्न 2. माँ कूष्माण्डा का वाहन कौन सा है?
उत्तर: माँ सिंह पर सवार रहती हैं।
प्रश्न 3. माँ कूष्माण्डा को अष्टभुजा देवी क्यों कहा जाता है?
उत्तर: क्योंकि उनकी आठ भुजाएँ हैं, जिनमें वे दिव्य अस्त्र-शस्त्र और जपमाला धारण करती हैं।
यह भी पढ़ें –
मां ब्रह्मचारिणी – नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाने वाली देवी
