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10 महाविद्याओं के नाम, उनके बीज मंत्र और उत्पत्ति
ये तो सभी जानते हैं कि माँ दुर्गा के नौ रूप प्रचलित हैं जिनकी पूजा नवरात्रों में की जाती हैं। ठीक उसी प्रकार माता की दस महाविद्या भी प्रसिद्ध हैं जिनकी पूजा गुप्त नवरात्रों के समय की जाती हैं। यह 10 महाविद्या माता सती ने भगवान शिव के सामने अपना प्रभाव दिखाने के लिए प्रकट की थी, जिनका प्राकट्य अलग-अलग उद्देश्यों के लिए विभिन्न समयकाल में हुआ था।
10 महाविद्या नाम
इन 10 महाविद्याओं के नाम है :
- काली महाविद्या
- महाविद्या तारा
- त्रिपुर सुंदरी महाविद्या
- महाविद्या भुवनेश्वरी
- महाविद्या भैरवी
- महाविद्या छिन्नमस्ता
- महाविद्या धूमावती
- महाविद्या बगलामुखी
- महाविद्या मातंगी
- महाविद्या कमला
इन दस महाविद्याओं के रूप की साधना मुख्य रूप से तांत्रिक विद्या व शक्तियां प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। इसलिए इन्हें तांत्रिक महाविद्या या शक्तियां भी कहा जाता हैं। तंत्र क्रिया या सिद्धि प्राप्ति के लिए इन 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है। इन 10 विद्याओं की साधना और उपासना से मनुष्य को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
इन महाविद्याओं को दशावतार माना गया है। 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप है जिसे सिद्धि देने वाली माना जाता है। मां दुर्गा के इन दस महाविद्याओं की साधना करने वाले व्यक्ति को सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। प्रकृति के कण-कण में ये दस महाविद्या समाहित हैं। सारे ब्रह्मांड का मूल भी इन्ही महाविद्याओं में विराजमान है।
10 महाविद्या की उत्पत्ति
भागवत पुराण की कथा अनुसार जब भगवान शिव और सती का विवाह हुआ था, तब सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति इस विवाह के खुश नहीं थे और भगवान शिव ( दामाद ) का तिरस्कार करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे।
शिव का अनादर करने के उद्देश्य से राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसमें उन्होंने शिवजी के अतिरिक्त अन्य सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। राजा दक्ष ने अपनी अन्य पुत्रिओं और दामाद चंद्र देव को भी यज्ञ में आमंत्रित किया था। माता सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो सती भगवान शिव से यज्ञ में जाने की हठ करने लगीं, परन्तु शिव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
इस पर सती ने क्रोधवश एक भयंकर स्वरूप धारण कर लिया। सती का ऐसा रूप देखकर भगवान शंकर भागने लगे। जिस-जिस दिशा में शिव जाते थे, उन्हें रोकने के लिए माता का एक अतिरिक्त विग्रह प्रकट हो जाता था। इस प्रकार भगवान शंकर को रोकने के लिए माता सती ने दस रूप लिए जो 10 महाविद्या कहलाईं।
10 महाविद्या का रूप वर्णन और बीज मंत्र
काली महाविद्या
महाविद्या काली पहली महाविद्या मानी जाती हैं जो माँ सती के शरीर से प्रकट हुई थी। इनका रूप अत्यंत भीषण व दुष्टों का संहार करने वाला हैं। माता सती ने क्रोधवश सबसे पहले अपने सबसे भीषण रूप को प्रकट किया था जो फुंफकार रही थी।
देवताऔं और दानवों के बीच हुए युद्ध में मां काली ने ही देवताओं को विजय दिलवाई थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता के इस रूप की पूजा की जाती है। मां काली का उल्लेख और उनके कार्यों की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है
वर्ण | काला |
केश | खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | नग्न अवस्था |
मुख के भाव | अत्यधिक क्रोधित व फुंफकार मारती हुई |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | खड्ग, राक्षस की खोपड़ी, अभय मुद्रा, वर मुद्रा |
अन्य प्रमुख विशेषता | गले व कमर में राक्षसों की मुण्डमाल, जीभ अत्यधिक लंबी, एवं रक्त से भरी हुई |
महाविद्या काली मंत्र | ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा |
तारा महाविद्या
दूसरी महाविद्या सिद्धि माँ तारा से प्राप्त होती है, जिन्हे श्मशान तारा के नाम से भी पुकारा जाता है| जो व्यक्ति माँ तारा की आराधना करता है उसका जीवन सदैव खुशियों से भर जाता है। उस व्यक्ति को माँ तीव्र बुद्धि और रचनात्मक क्षमता प्रदान करतीं हैं। शत्रुओं को खत्म करने के लिए भी श्मशान माता की पूजा होती है।
देवी के इस रूप की आराधना करने पर आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ है इसी स्थान पर देवी तारा की उपासना महर्षि वशिष्ठ ने की थी और तमाम सिद्धियां हासिल की थी। तारा देवी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित है।
इनका रूप भी भीषण व दुष्टों का संहार करने वाला हैं, इसलिए इन्हें माँ काली के समान ही माना गया हैं। मातारानी के इस रूप ने भगवान शिव को स्तनपान करवाया था, इसलिए इन्हें शिव की माँ की उपाधि भी प्राप्त हैं।
सतयुग में देव-दानवों के बीच हुए समुंद्र मंथन में जब अथाह मात्रा में विष निकला तो उसका पान महादेव ने किया किंतु विष के प्रभाव से उनके अंदर मूर्छा छाने लगी। तब माता पार्वती ने तारा रूप धरकर उन्हें स्तनपान करवाया जिससे शिवजी पर विष का प्रभाव कम हुआ।
शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार से घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।
वर्ण | नीला |
केश | खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | बाघ की खाल |
मुख के भाव | आश्चर्यचकित व खुला हुआ |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | खड्ग, तलवार, कमल फूल व कैंची |
अन्य प्रमुख विशेषता | गले में सर्प व राक्षस नरमुंडों की माला |
महाविद्या तारा मंत्र | ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट |
त्रिपुर सुंदरी महाविद्या
त्रिपुर सुंदरी महाविद्या इन्हें ललिता, राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं। त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है। यहां पर माता की चार भुजा और 3 नेत्र हैं। इन्हें महाविद्या षोडशी के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि इनकी आयु सोलह वर्ष की थी।
पहले दो रूपों में मातारानी ने अपने भीषण उग्र रूप प्रकट किये थे। तत्पश्चात उनका यह सुंदर रूप प्रकट हुआ जो अत्यंत ही सुखकारी व मन को मोह लेने वाला था। इनका प्राकट्य अपने भक्तों के मन से भय को समाप्त करने व अंतर्मन को शांति प्रदान करने वाला था।
वर्ण | सुनहरा |
केश | खुले हुए एवं व्यवस्थित |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | लाल रंग के |
मुख के भाव | शांत व तेज चमक के साथ |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | पुष्प रुपी पांच बाण, धनुष, अंकुश व फंदा |
अन्य प्रमुख विशेषता | भगवान शिव की नाभि से निकले कमल के आसन पर विराजमान |
त्रिपुर सुंदरी महाविद्या मंत्र | ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: |
भुवनेश्वरी महाविद्या
मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या है। भुवन का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी का अर्थ है शासक इसीलिए माता भुवनेश्वरी ब्रह्मांड की शासक हैं। माता को राज राजेश्वरी के रूप में भी जानी जाती हैं और ब्रह्मांड की रक्षा करतीं हैं।
पुत्र प्राप्ति के लिए माता भुवनेश्वरी की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। यह शताक्षी और शाकम्भरी नाम से भी जानी जाती है। भुवनेश्वरी महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज ऊर्जा प्राप्ति होती है और जीवन में मान सम्मान मिलता है।
वर्ण | उगते सूर्य के समान तेज व सुनहरा |
केश | खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | लाल व पीले रंग के |
मुख के भाव | शांत व अपने भक्तों को देखता हुआ |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | अंकुश, फंदा, अभय व वर मुद्रा |
अन्य प्रमुख विशेषता | इनका तेज सर्वाधिक है जिसमें कई कार्यों की शक्ति निहित हैं |
भुवनेश्वरी महाविद्या मंत्र | ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम: |
भैरवी महाविद्या
महाविद्या भैरवी पांचवीं महाविद्या मानी जाती हैं। इनका रूप भी अत्यंत गंभीर व दुष्टों का संहार करने वाला हैं। अपने इस रूप के कारण इन्हें माता काली व भगवान शिव के भैरव अवतार के समकक्ष माना जाता हैं।
तांत्रिक समस्याओं का एक ही साधन है माँ त्रिपुर भैरवी। माँ भैरवी की आराधना करने से विवाह में आई बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है। भैरवी की उपासना से व्यक्ति से दुष्ट प्रभावों से मुक्ति मिलती है। इनकी पूजा से व्यापार में लगातार बढ़ोतरी और धन सम्पदा की प्राप्ति होती है।
भैरवी देवी का एक क्रुद्ध रूप है जो प्रकृति में मां काली से शायद ही अभी वाच्य है। देवी भैरवी भैरव के समान ही हैं जो भगवान शिव का एक उग्र रूप है जो सर्वनाश से जुड़ा हुआ है। इनका एक नाम चंडिका भी हैं क्योंकि इनका प्राकट्य चंड व मुंड नाम के दो राक्षसों का सेनासहित वध करने के लिए भी हुआ था।
वर्ण | काला |
केश | खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | लाल व सुनहरे |
मुख के भाव | खड्ग, तलवार, राक्षस की खोपड़ी व अभय मुद्रा |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | क्रोधित |
अन्य प्रमुख विशेषता | राक्षसों की खोपड़ियों के आसन पर विराजमान हैं, जीभ लंबी, रक्तरंजित व बाहर निकली हुई हैं |
भैरवी महाविद्या मंत्र | ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा |
छिन्नमस्ता महाविद्या
10 महाविद्या देवी छिन्नमस्ता का छठा स्वरूप है उन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है।
देवी छिन्नमस्ता का रूप माँ के सभी रूपों में सबसे अलग हैं क्योंकि इसमें देवी ने अपने एक हाथ में किसी राक्षस की खोपड़ी नही बल्कि अपना ही मस्तक पकड़े हुए खड़ी हैं।
जब माता दुर्गा ने अपनी दो सेविकाओं जया व विजया के साथ मंदाकिनी नदी पर स्नान करने गयी थी।स्नान करने के पश्चात तीनों को भूख लगी। दोनों सेविकाओं के द्वारा बार-बार भोजन की विनती करने पर माता ने अपना ही मस्तक धड़ से काटकर अलग कर दिया व उसके रक्तपान से सभी की भूख शांत की थी।
इनका स्वरूप कटा हुआ सिर और बहती हुई रक्त की तीन धाराएं से सुशोभित रहता है। इस महाविद्या की उपासना शांत मन से करने पर शांत स्वरूप और उग्र रूप में उपासना करने पर देवी के उग्र रूप के दर्शन होते है। छिन्नमस्तिके का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में स्थिति है। कामाख्या के बाद यह दूसरा सबसे लोकप्रिय शक्तिपीठ है।
वर्ण | गुड़हल के समान लाल |
केश | खुले हुए |
नेत्र | तीन |
हस्त | दो |
वस्त्र | नग्न, केवल आभूषण पहने हुए |
मुख के भाव | अपना ही रक्त पीते हुए |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | खड्ग व अपना कटा हुआ सिर |
अन्य प्रमुख विशेषता | गले में नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। धड़ में से तीन रक्त की धाराएँ निकल रही हैं, जिसमें से दो धाराएँ पास में खड़ी सेविकाएँ पी रही हैं। मैथुन करते हुए जोड़े के ऊपर खड़ी हैं। |
छिन्नमस्तिका महाविद्या मंत्र | श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा |
धूमावती महाविद्या
महाविद्या धूमावती सातवीं महाविद्या मानी जाती हैं । इनका रूप अत्यंत दुखदायी, बूढ़ा, दरिद्र, व्याकुल व भूखा हैं। महाविद्या धूमावती का यह रूप शिवजी के श्रापस्वरुप विधवा भी हैं। इनके अवगुणों के कारण इसे अलक्ष्मी व ज्येष्ठा भी कहा जाता है।
मां धूमावती प्रकृति में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्ठा और देवी नीर्ती के साथ की जाती है। ये तीनो देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं लेकिन साथ ही वर्ष के एक विशेष समय पर उनकी पूजा भी की जाती है।
धूमावती माता को अभाव और संकट को दूर करने वाली माता कहते है। इनका कोई भी स्वामी नहीं है। इनकी साधना से व्यक्ति की पहचान महाप्रतापी और सिद्ध पुरूष के रूप में होती है। ऋग्वेद में इन्हें ‘सुतरा’ कहा गया है।
वर्ण | श्वेत |
केश | खुले, मैले व अस्त-व्यस्त |
नेत्र | दो |
हस्त | दो |
वस्त्र | श्वेत |
मुख के भाव | थकान, संशय, दुखी, व्याकुल, बेचैन |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | टोकरी व अभय मुद्रा |
अन्य प्रमुख विशेषता | अत्यंत बूढ़ा एवं झुर्रियों वाला शरीर, घोड़े के रथ पर विराजमान जिसके शीर्ष पर कौवा बैठा है |
धूमावती महाविद्या मंत्र | ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा: |
बगलामुखी महाविद्या
बगलामुखी 10 महाविद्याओं में 8वीं महाविद्या है और इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी माना जाता है। मां बगलामुखी को माँ पितांबरा के नाम से भी जाना जाता है। माँ पितांबरा एक ऐसा स्वरूप है जो पीत अर्थात पीला वस्त्रों से, पीत आभूषणों से, स्वर्ण आभूषणों से, और पीत पुष्पों से सुसज्जित है। इस रूप में देवी एक मृत शरीर पर बैठी हुई अपने एक हाथ से राक्षस की जिव्हा पकड़े हुई हैं।
एक बार सौराष्ट्र में भयंकर तूफान ने बहुत तबाही मचाई थी। तब सभी देवताओं ने माँ से सहायता प्राप्ति की विनती की। यह देखकर माँ का एक रूप हरिद्र सरोवर से प्रकट हुआ और इस तूफान को शांत किया। उसके बाद से ही मातारानी का बगलामुखी रूप प्रचलन में आया।
बगलामुखी की साधना दुश्मन के भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। जो साधक नवरात्रि में इनकी साधना करता है वह हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। महाभारत के युद्ध में कृष्ण और अर्जुन ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी।
वर्ण | सुनहरा |
केश | खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त |
नेत्र | तीन |
हस्त | दो |
वस्त्र | पीले |
मुख के भाव | डराने वाले |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | बेलन के आकार का शस्त्र व राक्षस की जिव्हा |
अन्य प्रमुख विशेषता | गले व कमर में राक्षसों की मुण्डमाल, जीभ अत्यधिक लंबी, एवं रक्त से भरी हुई। |
बगलामुखी महाविद्या मंत्र | ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम: (1) ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2) |
मातंगी महाविद्या
महाविद्या मातंगी नौवीं महाविद्या मानी जाती हैं । महाविद्या मातंगी का यह रूप सबसे अनोखा हैं क्योंकि आपने कभी नही सुना होगा कि भगवान को झूठन का भोग लगाया जाता हो लेकिन महाविद्या मातंगी को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता है। महाविद्याओं में 9वीं देवी मातंगी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती हैं।
एक बार जब भगवान शिव व माता पार्वती विष्णु व लक्ष्मी का दिया हुआ भोजन कर रहे थे तब उनके हाथ से भोजन के कुछ अंश नीचे गिर गए। उसी झूठन में से माँ मातंगी का प्राकट्य हुआ। इसी कारण महाविद्या मातंगी के इस रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता हैं।
मतंग भगवान शिव का भी एक नाम है। जो भक्त मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करता है वह खेल, कला और संगीत के कौशल से दुनिया को अपने वश में कर लेता है।
वर्ण | गहरा हरा |
केश | खुले हुए व व्यवस्थित |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | लाल |
मुख के भाव | आनंदमयी एवं शांत |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | अंकुश, फंदा, तलवार, एवं अभय मुद्रा |
अन्य प्रमुख विशेषता | इनके हाथों में देवी सरस्वती के सामान वीणा रखी हुई है, इसलिए इन्हे तांत्रिक सरस्वती भी कहते हैं |
मातंगी महाविद्या मंत्र | ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा: |
कमला महाविद्या
महाविद्या कमला दसवीं व अंतिम महाविद्या मानी जाती हैं। महाविद्या कमला लक्ष्मी के समकक्ष माना गया हैं अर्थात यह एक तरह से माता लक्ष्मी का ही रूप हैं। इन्हें तांत्रिक लक्ष्मी भी कहा जाता हैं। माँ का एक रूप माँ लक्ष्मी भी हैं। इसी रूप को प्रदर्शित करने के लिए माँ सती ने अपने कमला रूप को प्रकट किया था।
मां कमला की साधना समृद्धि, धन सम्पति , नारी, पुत्र की प्राप्ति के लिए की जाती है। महाविद्या कमला की साधना से व्यक्ति धनवान और विद्यावान हो जाता है। धन एवं सुंदरता की देवी जिनकी वजह से आज भी इंद्र को देवराज कहा जाता है, वे हैं देवी कमला।
वर्ण | तेज एवं सुनहरा |
केश | खुले हुए एवं व्यवस्थित |
नेत्र | तीन |
हस्त | चार |
वस्त्र | लाल |
मुख के भाव | आनंदमयी, सुखकारी एवं शांत |
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा | दो कमल पुष्प, अभय एवं वरदान मुद्रा |
अन्य प्रमुख विशेषता | कमल पुष्प से भरे हुए सरोवर में, आसपास चार हाथी जल से अभिषेक करते हुए |
कमला महाविद्या मंत्र | हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा: |