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अनिद्रा का योग के द्वारा उपचार
योग की अनेक शाखाएँ मानव जीवन के दैनिक उपयोग के काम में आती हैं। योग के प्रणेता ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के जीवन के हर पहलू का अध्ययन किया था। मनुष्य के शरीर-यंत्र की हर सम्भावित विकास की दिशा में उन्होंने अनुसंधान किया। और उनकी मेहनत और साधना का परिणाम योग मार्ग के रूप में हमारे सामने है। योग सबसे पहले हमारे शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याओं का हल करता है। तत्पश्चात् वह मानसिक व्याधियों और विकारों का समाधान ढूँढता और उनका शमन करता है। इन दो समस्याओं का हल करके योग मनुष्य के शरीर और मन का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग बतलाता है, जिससे मनुष्य में असाधारण शक्ति का धीरे-धीरे प्रस्फुटन प्रारम्भ होता है। और अन्त में वह उसे ऋद्धि, सिद्धि और योग की विभूतियों की ओर ले जाता है।
सबसे पहले योग हमारे स्वास्थ्य की समस्या का हल निकालता है। योग के अभ्यासों द्वारा रोगों का उपचार होता है। अनेक बीमारियाँ आसन, प्राणायाम, मुद्रा एवं बन्ध तथा षट्कर्म के अभ्यास से दूर की जा सकती हैं, बशर्ते कि रोगी इनके महत्त्व को स्वीकार कर यौगिक उपचार के लिए हृदय से तैयार हो।
योग द्वारा अनिंद्रा का इलाज़ कैसे करें, उसके पहले हमने ऊपर योग का महत्त्व समझने की कोशिश की। अब हम अनिंद्रा के कारण और उसका उपचार जानने का प्रयत्न करेंगे। हमने यह सीखा है कि किसी भी व्यक्ति को कैसा भी अनिद्रा का रोग क्यों न हो, उसे यौगिक उपाय से दूर किया जा सकता है। जिसे अनिद्रा का रोग हो वो निम्न उपचारों में से किसी एक को चुन सकता है।
अनिंद्रा की उपचार विधियाँ
अनिद्रा के उपचार की प्रथम विधि
रात्रि को सोने के आधा घण्टा पूर्व एक दीपक में रेड़ी का तेल डाल दें। तत्पश्चात तेल में थोड़ा-सा कपूर मिला लें। फिर एक पुराने साफ कपड़े को चन्दन में भिगाकर सुखा लें। इसी कपड़े की बत्ती बनाकर तेल में लगाएं। ऐसे दीपक को रात्रि में जलाकर शान्त चित्त होकर कमरे में बैठें। दीपक की लौ को बिना पलकों को झपकाए लगातार निहारते जाएँ। जब आँखें दुखने लगें तो केवल दो सेकेन्ड के लिए बन्द कर लेवें। फिर आँखें खोलकर दीपक की लौ को निर्निमेष निहारें। इसी प्रकार कम-से-कम सात मिनट और प्रारम्भ में अधिक-से-अधिक पन्द्रह मिनट करें। ऐसा करने से आपको कुछ देर बाद भौंहों पर और भौंहों के बीच कुछ दबाव मालूम पड़ेगा और आँखें बन्द कर लेने की इच्छा होगी। यदि अनिद्रा का रोग आपको दीर्घकाल से हो तो कम से कम सात-आठ मिनट तक जरूर आपको दीपक की लौ पर अपनी दृष्टि को जमाये रखना चाहिए। इसके बाद उसी स्थान पर लेट जाएँ और आँखें बन्द कर लें। आँखें बन्द कर के दीपक की लौ को लेटे हुए ही अपनी भोहों के मध्य में देखने की कोशिश करें। आपको निश्चित ही अब नींद आ जाएगी। इस क्रिया को नित्य दोहराएं जब तक कि आपको स्वाभाविक और बिना प्रयास निद्रा न आने लग जाए। यह अनिद्रा का अनुभूत और सर्वसम्मत इलाज है।
अनिद्रा के उपचार की दूसरी विधि
यदि आप अनिद्रा के रोगी हैं तो शान्त और एकान्त कमरे में बिस्तर पर चित्त लेट जाएँ। आँखें बन्द कर लेवें और धीरे-धीरे अपने शरीर के सभी अंगों में किसी एक क्रम से मानस-संचरण और शिथिलीकरण करते जाएँ। जैसे कि आप अपने बाएँ पैर के अंगूठे से मानस-संचरण शुरू करते हुवे सब बाएँ अंगों और केन्द्रों में होते हुए सिर तकअपनी चेतना को ले जाएँ। पुन: दाहिनी ओर से पहले सिर से शुरू करके क्रमशः पैर के अंगूठे तक अपनी चेतना को ले जाएँ। प्रत्येक शारीरिक अवयव में मन को ले जाते समय वहाँ की मांसपेशियों, नसों और नाड़ियों को ढीला करते जाएँ। यह क्रिया कम-से-कम बीस मिनट में पूरी होनी चाहिए और आप देखेंगे कि यह क्रिया पूरी करते-करते आपको नींद आने लग जाएगी। यह सोने का वैज्ञानिक तरीका है।
अनिद्रा के उपचार की तीसरी विधि
यदि आप अनिद्रा के रोगी हैं तो आप कड़े बिस्तर पर चित्त लेट जाए। ढीली खाट या ढीला निवाड़ का पलंग या बहुत ज्यादा गद्देदार बिस्तर न हो, क्योंकि उसमें रीढ़ की हड्डी जिसे सुषुम्ना कहते हैं वह वास्तविक दशा में नहीं रहती। इसी कारण योगी, संन्यासी और भक्त चौकी या भूमि पर शयन करते पाये जाते हैं। ये नियम शरीर साधन और तप के उतने नहीं हैं जितने शरीर को अच्छे स्वास्थ्य और प्रकृति के निकट रखने के हैं। सुषुम्ना को जितना सीधा रखा जायेगा, चाहे सोने में अथवा बैठने के समय, उतना ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रह सकेगा।
बिस्तर पर पीठ के बल लेटकरअपने दोनों पैरों को थोड़ा-सा अलग कर लेवें। सिर के नीचे हल्का तकिया रख लेवें। अब आँखें बन्द कर श्वास के साथ ॐ का जप करना शुरू कर दें। पूरे ध्यान और सतर्कता से केवल श्वास लेवेंऔर बाहर निकालें और प्रत्येक श्वास की लम्बाई में ॐ का मानसिक जप करते चलें जाएँ। अन्दर जाती हुई और बाहर आती हुई श्वास, दोनों में ॐ की भावना को आरोपित करते जाएँ और अपनी चेतना को बराबर श्वास के साथ ही जोड़ें रखें।
इस क्रिया में किसी तरह का शारीरिक श्रम नहीं होता। इसलिये सभी प्रकार के रोगी इसका अभ्यास कर सकते हैं। श्वास तो हर व्यक्ति जागृति और सुषुप्ति, दोनों में लेता है। ओर जप भी मानसिक ही है जिसमें किसी तरह का शारीरिक श्रम नहीं है। अब रहा मानस का प्रयत्न तो मानसिक विकारों को दूर करने के लिए कुछ प्रयत्न आवश्यक है। इस प्रकार से लेटकर प्रत्येक श्वास के साथ जप करने से आपकी श्वास की गति तालयुक्त हो जायेगी और तालयुक्त श्वास से सारे शरीर के अंगों एवं नाड़ियों को विश्राम और प्राण-शक्ति प्राप्त होगी। धीरे-धीरे आपको निद्रा आ जाएगी। यह जप कम से कम पन्द्रह-बीस मिनट अवश्य करें। यदि इसके पूर्व ही नींद आ जाए तो सो भी सकते हो।
अनिद्रा के उपचार की चौथी विधि
कड़े बिस्तर पर पूर्ववत् चित्त लेट जाएँ। पैरों को अलग और दोनों हाथों को बगल में इस प्रकार रखें कि हथेलियाँ ऊपर की ओर रहें। कुछ देर आँखें खोल कर लगातार बिना पलकें झपकाये नासिका के अग्र भाग को देखते रहें। लगातार पाँच-सात मिनट ऐसा करें। पुन: आँखें बन्द कर अपने भ्रूमध्य स्थल का ध्यान करें और उसी केन्द्र में अपने इष्ट मंत्र का जप करें। जब तक निद्रा न आ जाए, मन लगा कर जप करते रहें।
अनिद्रा के कारण
नींद न आना भी एक रोग है जिसके पीछे कई कारण होते हैं। ये कारण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। पहला तो शरीर में कोई गड़बड़ी होने पर रोगियों को निद्रा नहीं आती। पेट में दर्द, कान में दर्द, छाती में दर्द याने किसी प्रकार की शारीरिक पीड़ा या गड़बड़ी होने से निद्रा प्रायः नहीं आती।
दूसरा कारण है कोई मानसिक चिन्ता होने पर नींद नहीं आती। मन में किसी प्रकार का भय समाये रहने पर निद्रा नहीं आती। परीक्षा के दिनों में भय से विद्यार्थियों को नींद नहीं आती। घर में कोई बीमार हो या कोई दुर्घटना होने पर घरवालों को नींद नहीं आती। संक्षेप में किसी भी प्रकार का मानसिक आघात याने चिन्ता होने पर नींद नहीं आएगी।
तीसरा कारण है भावनात्मक। यदि मनुष्य को किसी तरह की भावनात्मक हलचल हो, तब चाहे उसमें भय और चिन्ता न भी हो, तो भी निद्रा नहीं आती। जैसे किसी की प्रतीक्षा में नींद नहीं आती, कोई शुभ सन्देश मिलने पर नींद नहीं आती, प्रिय व्यक्ति से मिलने पर नींद नहीं आती, इत्यादि।
पुनः किसी कार्य में अत्यधिक दिलचस्पी होने पर भी निद्रा नहीं आती। जैसे पुस्तक पढ़ना, चित्रकारी, हस्तकला विज्ञान के प्रयोग इत्यादि में लीन रहने पर। दीर्घ काल के रोगी को अनिद्रा होती है। उपवास करने पर नींद नहीं आती। और बुढ़ापे में नींद नहीं आती। शारीरिक श्रम नहीं करने वालों को अनिद्रा का रोग होता है।
अनिद्रा का कारण शरीर में गर्मी की कमी है। शारीरिक श्रम करने वाले आराम की अच्छी नींद सोते हैं, क्योंकि शारीरिक श्रम से शरीर में गर्मी और थकावट रहती है। इससे उन्हें जल्दी और गम्भीर निद्रा आती है। गरिष्ठ भोजन और अन्न से शरीर में अग्नि और गर्मी पैदा होती है। इससे नींद आती है। इसीलिए भोजन के बाद सबको प्राय: सोना अच्छा लगता है और तपस्वी नींद को कम करने के लिए ही मिताहार करते हैं या मात्र फल और दूध पर रहने लगते हैं।
जो लोग बड़े-बड़े शहरों में रहते हैं, उनके मस्तिष्क में बहुत तनाव रहते हैं। वे तनाव उनमें होना अस्वाभाविक नहीं, क्योंकि हर समय उनकी चेतना, नसों और दिमाग पर से ज्यादा और हर घड़ी दबाव पड़ता रहता है। कोलाहलमय जीवन, दौड़ धूप, बस और लोकल के पीछे भागना, समय पर ऑफिस पहुँचने की चिन्ता, थोड़े समय में अठारह-बीस मील सफर तय करने की पचराहट, आए दिन दुर्घटनाओं का साक्षी बनना और फिर जल्दी में भोजन करना, कृत्रिम सभ्यता के जीवन में दिन-रात रहना और रात्रि में भी शान्ति और आराम से न सो पाना ये सब बाते यदि मस्तिष्क में तनाव और अनिद्रा रोग ही उत्पन्न करती हैं। यही हाल पश्चिम के लोगों का और भारत के बड़े-बड़े शहरों में रहने वालों का होता है। हरदम वे घबराहट, जल्दबाजी, चिन्ता और परेशानी में रहते हैं। इससे दिमाग की नसे हर वक्त तनी हुई रहती हैं।
इन सब तनावों को दूर करने का एकमात्र सुखकर उपाय है भक्तियोग का अभ्यास और भगवान की शरणागति। भगवान में विश्वास होने से बड़े-बड़े दुःखों से भी शारीरिक और मानसिक आघात ज्यादा नहीं पड़ता और शरीर के स्नायुमंडल उन प्रभावों के धक्के सम्हाल लेते हैं। धार्मिक मनुष्य केवल एक भाव और एक वाक्य से अपना इलाज कर लेता है – जैसी भगवान की मर्जी। अब किसी विशेष घटना में भगवान का हाथ चाहे रहा हो या नहीं, किन्तु मनुष्य अपने इस भाव से जीवन संग्राम में सुरक्षा और सफलता पा तो लेता है। यह मनोवैज्ञानिक उपचार है।
अत्यधिक मानसिक श्रम करने वालों को अनिद्रा का रोग इसलिये हो जाता है कि उनके मस्तिष्क की नसों पर तो जरूरत से ज्यादा श्रम पड़ता है और बाकी शरीर निश्चेष्ट रहता है। अनिद्रा के रोगियों को यही सलाह है कि वे थोड़ा शारीरिक श्रम करें, भोजन में सुधार लायें और ऊपर बताए हुए किसी एक अभ्यास को करें। अल्प भोजन, शुद्ध भोजन और सुपाच्य भोजन लेना उत्तम है। निद्रा के बारे में डॉक्टरों का विचार है कि कम-से-कम छः घण्टे सोना चाहिए। परन्तु योगी ऐसा नहीं मानते। योगियों का कहना है कि निद्रा की एक विशेष अवस्था में यदि मनुष्य आधा या एक घण्टा भी किसी प्रक्रिया से चला जाय तो वह काफी है। यदि श्रम करते हुए भी मनुष्य श्रम से उत्पन्न होने वाले प्रभाव जैसे थकावट, क्लान्ति, इत्यादि की भावना से अपने को अछूता रखे, अपने को आत्मा समझे, जो न थकता है, अव्यय है, तो उसे ज्यादा सोने की जरूरत ही नहीं है।
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