भगवान से प्रार्थना कैसे करें, प्रार्थना क्या है? और क्या हैं प्रार्थना के लाभ
अगर आप चाहते हैं कि आपकी प्रार्थना भगवान तक पहुंचे तो आपको प्रार्थना करने के सही तरीके के बारे में पता होना चाहिए। आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि भगवान से प्रार्थना कैसे करें, प्रार्थना क्या है, और क्या हैं प्रार्थना के लाभ?
प्रार्थना क्या है?
परेशानी के समय सहायता के लिए ईश्वर पर निर्भर होना प्रार्थना है। आत्मा जब अशान्त हो जाती है, तब ईश्वर से शान्ति के लिए आग्रह करना प्रार्थना है। ईश्वर से आत्म-साक्षात्कार की माँग करना प्रार्थना है। प्रभु से सामर्थ्य, शान्ति और शुद्ध बुद्धि के लिए अनुरोध करना ही प्रार्थना है। भगवान के सामने अपने दिल को खोलकर उसका बोझ हल्का करना प्रार्थना है। जब आप द्वन्द्व में हों तब आपके लिए क्या सर्वोत्तम होगा, इसका निर्णय ईश्वर पर छोड़ना प्रार्थना है। प्रभु से मित्रता करना प्रार्थना है। ईश्वर मिलन के लिए आत्मा की आतुरता ही प्रार्थना है। प्रभु से मिलने के लिए व्यक्ति के द्वारा किया गया हर प्रयास प्रार्थना है। ईश्वर से समीपता प्रार्थना है। मन को ईश्वर से जोड़ना प्रार्थना है। मन को प्रभु में स्थिर करना प्रार्थना है। प्रभु का ध्यान प्रार्थना है। प्रभु के लिए अपने को पूर्ण रूप से समर्पित करना प्रार्थना है। एकान्त में मन और अहंकार को ईश्वर में मिला देना प्रार्थना है। भगवान की पूजा प्रार्थना है। उसकी महिमा गाना प्रार्थना है। ईश्वर को उसके आशीर्वादों के लिए धन्यवाद देना प्रार्थना है। आइये जाने भगवान से प्रार्थना कैसे करें?
भगवान से प्रार्थना कैसे करें
प्रार्थना के लिए सबसे महत्वपूर्ण है भावना – भगवान का सान्निध्य पाने का सर्वोत्तम तरीका प्रार्थना है। जब बिल्ली का बच्चा रोता है, तब उसकी माँ उसको तुरन्त पकड़ कर ले जाती है। वैसे ही भक्त जब आर्त्त होकर रोता है, तब भगवान उसको बचाने तुरन्त आ जाते हैं। प्रार्थना एक प्रचण्ड अध्यात्म-बल है। प्रार्थना वह गूढ़ अवस्था है जिसमें व्यक्ति की चेतना प्रभु में डूब जाती है। प्रार्थना एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति है। प्रार्थना की शक्ति भी उतनी ही सत्य है, जितनी कि गुरुत्वाकर्षण बल की शक्ति। प्रार्थना के लिए अधिक बुद्धिमान् या वाक्पटु होने की आवश्यकता नहीं है। प्रार्थना के लिए महान् पाण्डित्य या योग्यता की आवश्यकता नहीं है। प्रार्थना के लिए सबसे महत्वपूर्ण है आपकी भावना। एक सुयोग्य विद्वान् के धाराप्रवाह शब्दों और व्याख्यानों की तुलना में एक अशिक्षित व्यक्ति के नम्रतापूर्ण, शुद्ध अन्तःकरण से निकले हुए कुछ शब्द भगवान को अधिक प्रिय लगते हैं। जब आप प्रार्थना करते हैं, तब ईश्वर आपका हृदय चाहता है। प्रार्थना-काल में आप भगवान के साथ एकलय हो जाते हैं। आप अक्षुण्ण वैश्व शक्ति के भण्डार (हिरण्यगर्भ) से जुड़ जाते हैं और इस भाँति उनसे ओज, शक्ति, प्रकाश तथा बल प्राप्त करते हैं।
भगवान से प्रार्थना करने के लिए ह्रदय की गहराइयों से उन्हें पुकारो, भावनाओ से भर जाओ, उनसे दिव्य ज्योति के अवतरण के लिए भाव विभोर होकर प्रार्थना करो। उनकी दया की याचना करो। उनके विरह में रोओ। उनके साहचर्य के लिए मचलो। दिव्य प्रेम की आग में मन को तपाओ। प्रगाढ़ शान्ति में विलीन हो जाओ। भक्ति की अग्नि में शरीर को जला दो और प्रेमामृत पीओ।
सच्चे और शुद्ध ह्रदय से प्रार्थना करें
प्रार्थना योग की शुरुआत है, यह प्रारम्भिक आध्यात्मिक अभ्यास है। प्रार्थना हृदय के अन्दर से निकलनी चाहिए, न कि मुख से। बिना भाव के प्रार्थना बर्तन की आवाज या मंजीरे की झनकार की तरह है। एक सच्चे, शुद्ध हृदय से निकली प्रार्थना को प्रभु तुरन्त सुनते हैं। एक छली, कपटी व्यक्ति की प्रार्थना कभी नहीं सुनी जाती है। सच्चे हृदय से और उत्साहपूर्वक अपने दिल की गहराई से प्रार्थना कीजिये। ईश्वर आपकी प्रार्थना सुनेंगे। अपने दिल की गहराई से केवल एक बार प्रार्थना कीजिये। मन को विनम्र और ग्रहणशील बनाये रखिये। हृदय में गहरे भाव को जाग्रत कीजिये। प्रार्थना तुरन्त सुनी जाती है और उसका जवाब भी मिलता है। अपने दैनिक जीवन के संघर्ष में इसे अपनाइये एवं प्रार्थना की दिव्य शक्ति को स्वयं अनुभव कीजिये। लेकिन ईश्वर के अस्तित्व में आपको पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
बच्चे की तरह सरल बनकर प्रार्थना करें
प्रातःकाल जल्दी उठकर कुछ प्रार्थना कीजिये। जैसे आप चाहें, वैसे प्रार्थना कीजिये। बच्चे की तरह सरल बनिये। अपने दिल के बन्द दरवाजों को पूरी तरह खोल दीजिये। छल और कपट का त्याग कीजिये। आपको सब कुछ प्राप्त होगा। सच्चे भक्त प्रार्थना की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हैं। नित्य प्रार्थना और सेवा के द्वारा भगवान के साथ हृदय की एकलयता साधो। उनके सामने अपने हृदय को खोल कर रख दो। कोई बात न छिपाओ। एक बच्चे की तरह उनसे वार्तालाप करो। नम्र और सरल रहो। अपने पापों के लिए आर्द्रहृदय से उनसे क्षमा याचना करो। अपनी कृपा बरसाने के लिए उनसे आग्रह करो। आपको सब-कुछ प्राप्त होगा। उनके दर्शन भी होंगे।नित्य प्रार्थना से जीवन में क्रमिक परिवर्तन होता है। प्रार्थना आपकी प्रकृति ही बन जानी चाहिए। प्रार्थना की यदि आदत हो जाये, तो बिना प्रार्थना के आप जी नहीं सकते। नियमित रूप से प्रार्थना करने वाला मनुष्य उस आध्यात्मिक यात्रा में चल पड़ा है, जो शाश्वत शान्ति और सुख के राज्य को जाती है।
पूरे विश्व की शान्ति और समृद्धि के लिये प्रार्थना कीजिये
प्रतिदिन प्रातः काल उठने के पश्चात् और सोने से पहले कम-से-कम पाँच मिनट के लिए प्रार्थना कीजिये। प्रतिदिन अपनी सच्ची प्रार्थना के माध्यम से प्रभु से मिलन कीजिये। यदि प्रार्थना आपकी आदत बन जाती है, तो आपको अनुभव होगा कि आप इसके बिना नहीं रह सकते हैं। चाहे कितने भी प्रलोभन या समस्याएँ आपको घेरें, अपनी प्रार्थना को बरकरार रखिये। प्रार्थना के द्वारा अपने चारों ओर एक अभेद कवच बना लीजिये। बिना किसी स्वार्थ के प्रार्थना कीजिये। पहले पूरे विश्व की शान्ति और समृद्धि के लिये प्रार्थना कीजिये, फिर अपने लिए प्रार्थना कीजिये। किसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य या सांसारिक पदार्थ के लिए प्रार्थना मत कीजिये। प्रभु की कृपा के लिए प्रार्थना कीजिये। दिव्य प्रकाश, शुद्धता एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कीजिये। साधना करने के लिए, मन और इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए आत्मज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति की याचना कीजिये। दैवी कृपा के लिये प्रार्थना कीजिये। ईश्वर आपके हृदय में रहता है। उसको निरन्तर याद करने से आप पवित्र हो जायेंगे और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।
प्रभु से अपनी त्रुटियों को दूर करने के लिए शक्ति प्राप्त करने हेतु प्रार्थना कीजिये। कष्ट से मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि उसका सामना करने के लिये सामर्थ्य और सहनशीलता के लिये प्रार्थना कीजिये। स्वयं को इच्छारहित बनाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कीजिये। अपने हृदय के अन्तरतम से एक बार तो प्रार्थना कीजिए, ‘हे प्रभु, मैं तेरा हूँ। तेरा ही होकर रहूँगा। मुझ पर करुणा कर। मैं तेरा सेवक हूँ। क्षमा कर पथ-प्रदर्शन कर रक्षा कर प्रकाश दे।’ यदि प्रार्थना आन्तरिक है, यदि वह आपके हृदय के अंतस्तल से नि:सृत हुई है, तो तत्क्षण ही ईश्वर के हृदय को द्रवित कर देगी। प्रार्थना पर्वतों को चलायमान कर सकती हैं। प्रार्थना चमत्कार कर सकती है। सभी दिशाओं में प्रार्थना के तीर छोड़िये। कोई न कोई तो प्रभु के ह्रदय में अवश्य लगेगा। आपका काम केवल प्रार्थना करना है, बस। वह सुनता है या नहीं, इसकी चिन्ता आपको नहीं करनी है। हमने जाना कि भगवान से प्रार्थना कैसे करें और अब हम जानेंगे प्रार्थना के लाभ।
प्रार्थना के लाभ
जो व्यक्ति नियमित प्रार्थना करता है, वह शाश्वत शान्ति और आनन्द की ओर ले जाने वाली अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ कर चुका है। प्रार्थना व्यक्ति को उन्नत बनाती, रूपान्तरित और प्रेरित करती है। प्रार्थना बचाती और पार लगाती है। प्रार्थना से शान्ति और तेजस्विता प्राप्त होती है। जो व्यक्ति प्रार्थना नहीं करता है, वह व्यर्थ ही जी रहा है।
प्रार्थना उस स्तर तक पहुँचा देती है जहाँ तर्क पहुँचने का साहस भी नहीं करता। प्रार्थना के दिव्य प्रकाश के द्वारा अज्ञान के अन्धेरे को दूर किया जा सकता है। प्रार्थना एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति है। प्रार्थना आत्मा के लिये आध्यात्मिक भोजन है। प्रार्थना आध्यात्मिक टॉनिक है। इससे अधिक पवित्र करने वाली कोई चीज नहीं है।
प्रार्थना से आध्यात्मिक स्पन्दनों का निर्माण होता है और मन को शान्ति मिलती है। यदि आप नियमित प्रार्थना करते हैं, तो आपका जीवन क्रमशः बदलेगा और उन्नत बनेगा। प्रार्थना शाश्वत आनन्द का द्वार है। सच्ची और निष्ठापूर्ण प्रार्थना से असाध्य रोग भी अच्छे हो जाते हैं। प्रार्थना से अध्यात्म लहरियों का संचार होता है और मन में शान्ति स्थापित होती है।
प्रार्थना हृदय को उदार बनाती और पवित्र करती है। प्रार्थना हृदय को अपरिमित शक्ति और बल प्रदान करती है। प्रार्थना से हृदय हल्का हो जाता है और मन को शान्ति, सामर्थ्य एवं पवित्रता की प्राप्ति होती है। प्रार्थना से व्यक्ति का मन और बुद्धि शुद्ध होते हैं एवं सत्त्व से भर जाते हैं। प्रार्थना के द्वारा जब मन शुद्ध और सात्त्विक हो जाता है, तब बुद्धि तीव्र एवं कुशाग्र हो जाती है। जब आप प्रार्थना करते हैं, तब आप स्वयं को अनन्त आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जोड़ लेते हैं और प्रभु से शक्ति, ऊर्जा, प्रकाश एवं सामर्थ्य प्राप्त करते हैं।
प्रार्थना मोक्ष के मार्ग का सच्चा साथी है। प्रार्थना करने वाला भक्त मृत्यु के भय से भी मुक्त हो जाता है। प्रार्थना भक्त को भगवान के निकट ले जाती और उसे दिव्य चेतना का अनुभव कराती है। प्रार्थना के द्वारा आत्मा भक्ति के पंख लगाकर प्रभु के पास पहुँच जाती है। प्रार्थना के माध्यम से भक्त अनन्त सत्ता के सम्पर्क में रहता है।
ईश्वर निराकार है। परन्तु भक्त की भावपूर्ण प्रार्थनाओं के कारण वह अपनी स्वतन्त्र इच्छा से अनेक रूप धारण करता है। प्रार्थना कीजिये, वह अपने आप को अवश्य प्रकट करेगा।
प्रार्थना से पर्वतों को हटाया जा सकता है। प्रार्थना से चमत्कार होते हैं। जब सभी डॉक्टर किसी मरीज के बचने की आशा छोड़ देते हैं, तब प्रार्थना से मदद मिलती है और मरीज चमत्कारिक रूप से ठीक हो जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण है।
प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना की शक्ति अनिर्वचनीय है। उसकी महिमा अगम्य है। प्रहलाद के सिर पर उबलता तेल डाले जाने पर प्रार्थना के ही बल से ठण्ढा हो गया। मीरा की काँटों की सेज को फूल की सेज में परिवर्तित करने वाली, साँप को फूलमाला में बदल देने वाली प्रार्थना ही थी। द्रोपदी ने अनन्य भाव से प्रार्थना की। श्रीकृष्ण को उसकी रक्षा के लिए द्वारका से दौड़ कर आना पड़ा। गजेन्द्र ने हृदय से पुकारा, भगवान हरि को उसको बचाने के लिए सुदर्शन चक्र के साथ आना पड़ा। ! यह प्रार्थना की ही शक्ति थी कि श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने, उन्हें गीता सुनायी, द्रोपदी और मीरा की रक्षा की, अन्धे सूरदास को रास्ता दिखाया तथा नरसी मेहता की रकम चुकायी। नामदेव ने प्रार्थना की तथा विट्ठल मूर्त्ति से निकल कर भोजन करने के लिए बैठ गये। एकनाथ ने प्रार्थना की तथा भगवान हरि ने चतुर्भुज रूप में अपना दर्शन दिया। मीरा ने प्रार्थना की, भगवान कृष्ण ने दास के समान उनकी सेवा की। सुदामा जी ने प्रार्थना की, भगवान कृष्ण उनका ऋण चुकाने के लिए निम्न जाति के व्यक्ति बन गए।
प्रार्थना धर्म का सार और उसकी आत्मा है। प्रार्थना के बिना कोई व्यक्ति जी नहीं सकता।
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