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स्वस्ति वाचन (Swasti Vachan) मंत्र लिखित में, संस्कृत में, भावार्थ सहित
चाहे कोई भी पूजा हो, घर का मुहूर्त हो या कोई हवन का आयोजन.. एक मंत्र – ऊं स्वस्ति न इंद्रो…..मंत्र आपने जरूर सुना होगा। इस जाप के वक्त पंडित और विद्वान लोग एक अलग ही ऊर्जा के साथ सस्वर पाठ करते सुनाई देते हैं। इसे स्वस्ति वाचन मंत्र कहते हैं और शास्त्रों में संपूर्ण स्वस्ति वाचन मंत्र बड़ा ही फलकारी बताया गया है। इस मंत्र के लिए जरूरी नहीं कि कोई बड़ा अनुष्ठान हो। आप दैनिक जीवन में भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
स्वस्तिक मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते हैं. यह माना जाता है कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया ‘स्वस्तिवाचन’ कहलाती है।
स्वस्ति वाचन मंत्र (Swasti Vachan Mantra)
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
स्वस्ति वाचन मंत्र हिन्दी में भावार्थ
हे महान् कीर्ति वाले, ऐश्वर्यशाली देवराज इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य अथवा वैदिक देवता) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।
स्वस्ति वाचन के नियम
1. स्वस्ति वाचन किसी भी पूजा के प्रारंभ में किया जाना चाहिए।
2. स्वस्ति वाचन के पश्चात सभी दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में प्रयुक्त जल के छीटें लगाने चाहिए।
3. नए घर मे प्रवेश के समय भी ऐसा करना मंगलकारी होता है।
4. विवाह के विधिविधान में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।
जिस प्रकार स्वास्तिक सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं।
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