भारत की भक्ति धारा में अनेकों संत और कवि हुए, लेकिन उनमें से गोस्वामी तुलसीदास का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि रामभक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ भी थे। उनकी कृतियों ने भारतीय समाज, संस्कृति, आध्यात्म और धर्म को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की। तुलसीदास की लेखनी में प्रेम, समर्पण, नैतिकता, धर्म, भक्ति और जीवन मूल्यों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। विशेष रूप से रामचरितमानस ने उन्हें युगों-युगों तक अमर बना दिया, जिसे आज भी करोड़ों श्रद्धालु भावपूर्वक पढ़ते और सुनते हैं।
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तुलसीदास का जन्म और प्रारंभिक जीवन
तुलसीदास के जन्म के बारे में स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, किंतु माना जाता है कि उनका जन्म संवत 1554 (ईस्वी 1497) में उत्तर प्रदेश के राजापुर, जिला चित्रकूट में हुआ था। जन्म के समय तुलसीदास ने “राम” नाम का उच्चारण किया, और इस चमत्कार को सुन परिवार चकित रह गया। दुर्भाग्यवश जन्म के कुछ समय बाद ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया और तुलसीदास को बचपन में ही अत्यंत कष्ट झेलने पड़े। उनका लालन-पोषण एक भिक्षुक और साधु की देखरेख में हुआ।
शिक्षा और आध्यात्मिक जागृति
तुलसीदास को प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और ब्रजभाषा में मिली। बाल्यकाल से ही उन्हें आध्यात्म में गहरी रुचि थी और भगवान राम के प्रति अगाध प्रेम था। जागतिक जीवन और वैवाहिक संसार के अनुभव के बाद तुलसीदास के भीतर विरक्ति बढ़ी। धीरे-धीरे वे पूर्णतया भक्ति की ओर प्रवृत्त हुए और जीवन को प्रभु श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया।
रामचरितमानस की रचना
तुलसीदास की सबसे महान कृति, रामचरितमानस, संवत 1631 में काशी में आरंभ और चित्रकूट में पूर्ण हुई। इसे अवधी भाषा में रचा गया ताकि जन-जन तक भगवान राम का चरित्र व शिक्षा पहुँचे। रामचरितमानस न केवल भक्तिभाव से भरी महाग्रंथ है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का अनुपम भंडार भी है।
इस रचना की कुछ विशेषताएँ:
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सरल भाषा, जिससे हर वर्ग के लोग समझ सकें
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मानव मूल्यों पर आधारित प्रेरणादायक कथा
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जीवन के हर संकट का समाधान
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परिवार, समाज और धर्म की सुरक्षा का संदेश
अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ
तुलसीदास ने लगभग 45 ग्रंथों की रचना की। कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं:
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विनय पत्रिका
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हनुमान चालीसा
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संकट मोचन स्तोत्र
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कवितावली
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गीतावली
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पार्वती मंगल
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रामलला नहछू
इन रचनाओं ने भारतीय साहित्य को अमूल्य धरोहर दी और भक्ति आंदोलन को नई उंचाइयाँ प्रदान कीं।
समाज और धर्म पर तुलसीदास का प्रभाव
तुलसीदास ने आध्यात्मिकता को जीवन की मौलिक आवश्यकता बताया।
उनकी शिक्षाओं का सार:
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ईश्वर भक्ति मन को निर्मल करती है
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मनुष्य का धर्म—सदाचार और परोपकार है
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प्रेम से बड़ा कोई मार्ग नहीं
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ईश्वर विश्वास कठिनाइयों को सरल करता है
तुलसीदास की रचनाएँ आज भी जीवन की उलझनों में सरल समाधान देती हैं और भक्ति-रस में डुबो देती हैं।
तुलसीदास का अंतिम समय और विरासत
तुलसीदास ने काशी (वाराणसी) में अपना अंतिम समय बिताया और वहीं उनका देहावसान हुआ।
माना जाता है कि श्रीहनुमान जी ने स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उनके जीवन की अंतिम इच्छा पूर्ण की।
आज भी विश्वभर में:
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रामचरितमानस के पाठ होते हैं
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हनुमान चालीसा सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला स्तोत्र है
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तुलसीदास की शिक्षाएँ जीवन दर्शन का स्तंभ हैं
निष्कर्ष
तुलसीदास केवल कवि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक युगपुरुष थे। उन्होंने मानव जीवन के हर पहलू को समझा और उसे सरल, सुंदर और अनमोल शब्दों में पिरोकर दुनिया को भेंट किया। उनके लेखन की भक्ति, ज्ञान और संस्कृति भारतीय जनमानस की आत्मा बन चुकी है। यही कारण है कि तुलसीदास सदियों बाद भी हमारे मन, विचार और आस्था में उतनी ही गहराई से बसे हुए हैं जितने अपने समय में थे। वे आने वाली पीढ़ियों को रामभक्ति, नैतिकता और सदाचार का मार्ग दिखाते रहेंगे।
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