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होली कब और क्यों मनाई जाती है?
फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाने वाला होली का त्योहार भारत में सर्दियों के अंत का प्रतीक है और साथ ही साथ वसंत ऋतू का स्वागत करता है इस दिन भारत में लोग एक दुसरे से मिलते हैं और उ न पर रंग और गुलाल लगाते हैं| देश में अन्य त्योहारों की तरह इस त्यौहार के पीछे भी एक लोक्रपिय कथा है|आइए इस रंग बिरंगे त्यौहार के पीछे की कथा के बारे में जाने|
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्याचारी राक्षस था, जिसने तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी व्यक्ति या जानवर उसे नहीं मार सकता है; ना ही कोई अस्त्र-शस्त्र से उसे मारा जा सकता है; और ना ही धरती पर और ना ही आकाश में कोई उसे मार सकता है|
वह अपने आप को भगवान समझने लगा और वह चाहता था कि अब लोग मेरी पूजा करें| वो लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने के लिए कहने लगा।
प्रजा के ऐसा ना करने पर उन पर अत्याचार करता था और खुद को ही उनका भगवान बताता था।
इस दुष्ट राजा का एक बेटा भी था जिसका नाम था प्रहलाद। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और सिर्फ भगवान पर यकीन करता था।
असुर राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को बहुत समझाया। लेकिन पिता के लाख मना करने के बावजूद भी प्रहलाद नहीं माना और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा, जिसके कारण उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने का निश्चय कर लिया।
उसकी एक बहन होलिका थी, जिसे आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था|
तो हिरण कश्यप ने अपनी बहन होलिका को अपने पुत्र प्रह्लाद को आग में लेकर बैठने को कहा। होलिका प्रहलाद को आग में लेकर बैठ गई, लेकिन प्रहलाद पर भगवान विष्णु की कृपा थी| जिसके कारण प्रह्लाद सुरक्षित बच जाता है और होलिका उस आग में जलकर भस्म हो जाती है|
होलिका के जल जाने के कारण होलिका दहन मनाया जाता है और प्रहलाद के बच जाने की खुशी में रंग गुलाल से होली मनाई जाती है। बुराई पर अच्छाई की जीत के कारण होली का त्यौहार मनाया जाता है|
होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती है जिसमें सभी तरह की बुराई ,अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है|
उसके अगले दिन हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं और इसके साथ ही नाच गाने और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस त्यौहार का आनंद लिया जाता है|
होलिका दहन में भद्रा का बहुत ज्यादा विचार किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन भद्रा रहित पूर्णिमा की रात ही करना चाहिए|
इस वर्ष होली कब मनाई जाएगी?
इस बार होलिका दहन 7 मार्च को मनाया जाएगा जबकि भद्राकाल का जो साया है 6 मार्च को शाम 4:48 पर शुरू होगा और 7 मार्च को सुबह 7:14 पर समाप्त हो जाएगा क्योंकि शाम के समय ही होलिका दहन किया जाता है|
साल 2023 में 7 मार्च मंगलवार को होलिका दहन किया जाएगा और 8 मार्च 2023 दिन बुधवार को होली मनाई जाएगी|
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी 6 मार्च सोमवार शाम 4:18 से और पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी 7 मार्च मंगलवार शाम 6:10 तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रहेगा 7 मार्च मंगलवार शाम 6:29 से रात 8:52 तक और इस पर होलिका दहन के समय भद्राकाल का साया भी नहीं रहेगा|
इस बार भद्रा सुबह ही समाप्त हो जाएगी भद्र काल प्रारंभ होगा 6 मार्च सोमवार शाम 4:48 से भद्रा काल समाप्त होगा 7 मार्च मंगलवार सुबह 5:14 तक होली से ठीक 1 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं|
इस बार 27 फरवरी सोमवार से 7 मार्च मंगलवार तक होलाष्टक रहने वाले हैं और मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के समय कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए|
होलिका दहन के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
होलिका दहन के दिन किसी को भी धन देना शुभ नहीं माना जाता है| यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
होलिका दहन की शाम को पूजा करते समय महिलाओं को अपने बालों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए| होलिका दहन के समय आपके बाल बंधे होने चाहिए।
अगर आपको सड़क पर कोई भी वस्तु मिल जाती है तो उसे उठाना नहीं चाहिए और ना ही उसको छूना चाहिए। नवविवाहिता को होली की अग्नि को जलते हुए नहीं देखना चाहिए कहते हैं क्यूंकि दांपत्य जीवन में बहुत सारी परेशानियां आती हैं|
होलिका दहन के दिन उत्तर दिशा की तरफ तिल के तेल का या फिर भी घी का एक दीपक जलाये दीपक अपने मुख्य द्वार या चाट पर पर भी जला सकते हैं|
मान्यता है कि दीपक जलाने से घर में सुख समृद्धि आती है और हर प्रकार की जो भी नकारात्मकता होती है, वह दूर हो जाती है। होलिका की राख का तिलक घर के हर सदस्य को लगाना चाहिए ऐसा करने से हर तरह के रोग से छुटकारा मिलता है|