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पूर्ण स्वास्थ्य का मतलब
आधुनिक युग में हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने की लिए अनेको उपाय करते हैं, किन्तु हमारे मन की क्या आवश्यकताएं हैं, इसके लिए हम कुछ नहीं करते. यही कारण है की हमारा मन आज रोगी हो गया है. इसीलिए हमें मानसिक स्वास्थ्य को कैसे अच्छा रखा जाये, इसकी जानकारी होना अति आवश्यक है. शरीर और मन के बाद यह भी सोचे कि हमने अपने आध्यात्मिक स्वास्थ्य कि लिए क्या किया है ? योग में हम सीखते हैं कि पूर्ण स्वास्थ्य का मतलब है – प्राण, मन, और आत्म शक्तियों का उचित एवं संतुलित वितरण.
तीन आधारभूत शक्तियां
योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है. योग दर्शन के अनुसार मानव तीन आधारभूत तत्वों – जीवनी शक्ति यानि कि प्राण, मानसिक शक्ति यानि कि मन और आध्यात्मिक शक्ति यानि कि आत्मा का सम्मिश्रण है.
जीवनी शक्ति अथवा प्राण
हमारा जीवन प्राणों का ही एक चमत्कारिक स्वरुप है. प्राण ही वह तत्त्व है जिसके कारण हमारा जीवन क्रियाशील रहता है. यह प्राणशक्ति हमारे संपूर्ण अस्तित्व में व्याप्त है. हमने इसी के साथ जन्म लिया है. यहाँ हमें यह ज्ञात होना आवश्यक है कि भ्रूण चार माह तक तो माता के प्राणों पर आधारित होता है, किन्तु पांचवे माह से वह प्राणों की स्वतंत्र इकाई बन जाता है. जब शरीर में प्राणों का उचित मात्रा में संचार होता है तो हम ऊर्जा और उत्साह से भरे रहते हैं और हमारी इन्द्रिय संवेदनाएं तीक्ष्ण होती हैं. वहीं इसकी विपरीत अवस्था में हम थकान और अशक्तता का अनुभव करते हैं.
मानसिक शक्ति अथवा मन
प्राणों के अलावा हमारे शरीर में जो एक अन्य शक्ति है उसे या तो मन या चेतना या मानसिक शक्ति कह सकते हैं. यही वह शक्ति है जिसके द्वारा हम सोचते हैं, मनन करते है, उचित क्या है, अनुचित क्या है, यह सब जानते हैं.
हमारे शरीर में मनस शक्ति और प्राणशक्ति दो प्रमुख प्रवाहों के रूप में प्रवाहित होती है. इन प्रवाहिनियों को इड़ा और पिंगला नाड़ी कहते हैं. शरीर के प्रत्येक अंग में इन दो नाड़ियों का प्रवाह होता है या ऐसा कह सकते हैं कि मनुष्य शरीर को प्राण शक्ति और मनस शक्ति ही चलाती है. जब प्राण शक्ति और मनस शक्ति का संयोजन होता है तो वे एक ऊर्जा में परिणत हो जाती हैं. अगर इन में से एक शक्ति भी प्रवाहित नहीं हो रही हो तो हमारे अंग अकर्मण्य हो जाते हैं. इसीलिए योग के अनुसार सिर से लेकर पैर तक इन दोनों प्रवाहों में संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा हम रोगी हो जायेंगे.
आध्यात्मिक शक्ति अथवा आत्मा
हमने दो शक्तियों कि बात की – मनस शक्ति और प्राण शक्ति, ये दोनों ही शारीरिक शक्तियां हैं. अब आती है तीसरी शक्ति – आध्यात्मिक आत्मशक्ति. यह शक्ति अत्यंत ही सूक्ष्म, भावातीत और निराकार होती है. और इन तीनों ही शक्तियों – शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक – का निर्माता है हमारा मूलाधार चक्र. हमने ऊपर पढ़ा की मनस शक्ति की प्रवाहिनी इड़ा नाड़ी है और प्राण शक्ति की प्रवाहिनी पिंगला नाड़ी है. तीसरी शक्ति आध्यात्मिक शक्ति इतनी शक्तिशाली होती है कि यह इन दोनों ही प्रवाहिनियों में नहीं बह सकती. इसके प्रवाह के लिए एक अन्य नाड़ी होती है जिसे सुषुम्ना कहते हैं. यही नाड़ी आध्यात्मिक शक्ति को मूलाधार से सहस्रार तक ले जाती है और सम्पूर्ण मस्तिष्क को प्रकाशित करती है.
क्या आप जानते हैं कि मनुष्य मस्तिष्क का केवल एक भाग कार्य कर रहा है. अन्य नौ भाग जो हैं वे सुषुप्त अवस्था में पड़े हैं. इन्ही नौ भागों में अनंत ज्ञान, अनुभवों और शक्तियों का भंडार हैं. हम इनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वहाँ अभी हम चेतन शक्ति नहीं ले जा पाएं हैं. कुण्डलिनी शक्ति के जागरण से जब सुषुम्ना उस शक्ति को सहस्रार तक ले जाती हैं तो हम इन नौ भागों को प्रकाशित कर पाते हैं, इनमे जागरण कर पाते हैं और हमारे भीतर छुपा हुआ, सुषुप्त अवस्था में पड़ा ज्ञान का अकूत भंडार मुखरित हो उठता हैं और हम पाते हैं आध्यात्मिक पूँजी. तब हम शरीर, मन और आत्म के स्वामी कहलाने के अधिकारी बन जाते हैं.
तो हम यहाँ यह सीखते हैं कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्राण, मनस, और आत्म शक्तियों का संतुलित वितरण होना आवश्यक हैं. योग शास्त्र में हठयोग के अभ्यास के द्वारा शरीर शुद्धि, प्राणायाम के द्वारा नाड़ी शुद्धि और ध्यान के द्वारा आध्यात्मिक शक्ति का विकास कर मन, प्राण और आत्मशक्तियों को संतुलित किया जा सकता हैं. कहने का तात्पर्य यह हुआ कि हठयोग, राजयोग, और क्रियायोग के अभ्यास ना केवल शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, अपितु इनके अभ्यास मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत शक्तिशाली उपकरण हैं.
मनुष्य का आधारभूत जीवन तो आध्यात्मिक ही हैं. स्थूल जीवन तो उसका एक अंग मात्र हैं. जब हमारा जीवन योगमय होता हैं तो सर्वप्रथम आत्म ही हमारे लिए प्रमुख तत्व हो जाती हैं. उसके बाद आते हैं हमारा मन और शरीर. हमे अपने शरीर को स्वस्थ रखना हैं – ओषधियों से नहीं, बल्कि उच्च विचार, उच्च दर्शन और विश्वास की पूर्ती के द्वारा. हमे ध्यान योग को अपनाना हैं और पूर्ण स्वास्थ्य का अधिकारी बनना हैं.