सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखती है और यह व्रत विशेष भक्ति भावना के साथ किया जाता है। यह व्रत पूर्णिमा तिथि को, या मासिक पूर्णिमा के दिन या अपनी इच्छानुसार किसी भी दिन किया जा सकता है। इस व्रत के प्रमुख उद्देश्य में से एक है सत्यनारायण भगवान की कथा सुनकर आत्मशुद्धि, धर्मपालन, समृद्धि, शांति, एवं परिवार की खुशियों के लिए ब्रह्माज्ञान प्राप्त करना।
सत्यनारायण व्रत कथा कुलमणि ब्राह्मण कथा के रूप में भी जानी जाती है, जिसे धर्मिक ग्रंथों में प्रमुखतः पद्म पुराण में प्रस्तुत किया गया है। यह कथा विष्णु भगवान के एक रूप विश्वनाथ के नाम से जाने जाने वाले वैष्णव व्रत के रूप में प्रसिद्ध है। निम्नलिखित है सत्यनारायण व्रत कथा की संक्षेप में विवरण:
एक बार नेमिषा रन्य में तपस्या करते हुए शौनकादि ऋषियों ने सूत! जी से पूछा की जिसके करने से मनुष्य मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है ऐसा व्रत या तप कौन सा है
सूत! जी ने कहा की –
एक बार श्री नारद जी ने विष्णु भगवान से ऐसा ही प्रश्न किया था तब श्री विष्णु भगवान ने उनके सामने जिस वक़्त का वर्णन किया था वही मैं आपसे कहता हूँ|
प्राचीन काल में काशीपुरी में एक अति निर्धन और दरिद्र ब्राह्मण रहता था वह भूख प्यास से व्याकुल हो भटकता रहता था एक दिन उसकी दशा से व्यतीत होकर भगवान विष्णु ने बड़े ब्राह्म के रूप में प्रकट होकर उस ब्राह्मण को सत्य नारायण व्रत का विस्तार पूर्वक विधान बताया और अंतर्ध्यान हो गए|
ब्राह्मण अपने मन में श्री सत्य नारायण जी के व्रत का निश्चय करके घर लोट आया और इसी चिंता में उसे रात भर नींद नहीं आयी सवेरा होते ही वह सत्य नारायण भगवान के व्रत का संकल्प करके भिक्षा मांगने के लिए चल दिया| उस दिन उसे थोड़ी सी मेह्नत में ही अधिक धन भिक्षा में प्राप्त हुआ सायंकाल घर पहुँच कर उसने बड़ी श्रद्धा के साथ श्री सत्यनारायण भगवान का विधि पूर्वक पूजन किया भगवान सत्यनारायण की कृपा से वह थोड़े ही दिनों में धनवान हो गया|
वह जब तक जीवित रहा हर महीने वह सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजन करता रहा मृत्यु होने के बाद वह विष्णु लोक को प्राप्त हुआ सूत जी पुनः बोले की एक दिन वह ब्राह्मण अपने बंधू बांधो के साथ बैठे ध्यान मगन हो श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुन रहा था|
तभी भूख प्यास से व्याकुल एक लकड़हारा वहाँ जा पहुंचा वह भी भूख प्यास से व्याकुल कथा सुनने के लिए बैठ गया कथा की समाप्ति कर उसने प्रशाद ग्रहण किया और जल पिया फिर उसने ब्राह्मण से इस कथा के बारे में पूछा और उसने बताया यह सत्य नारायण भगवान का व्रत है जो मनोवांछित फल देने वाला है पहले मैं बहुत दरिद्र था|
इस व्रत के प्रभाव से मुझे यह सब वैभव प्राप्त हुआ यह सुनकर लकडहार बहुत प्रसन हुआ और मन ही मन श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत और पूजन का निश्चय करता हुआ लकड़ी बेचने बाजार की और चल दिया उसदिन लकड़हारे को लकड़ियों का दुगना दाम मिला उन्ही पैसो से उसने केले,दूध,दही आदि सभी पूजन की सामग्री खरीद ली और घर चला गया
घर पहुँच कर उसने अपने परिवार और पड़ोसियों को बुलाकर विधि पूर्वक सत्यनारायण भगवान का पूजन किया सत्यनारायण भगवान की कृपा से वह थोड़े ही दिनों में सम्पन हो गया|
सूत! जी ने फिर कहा की –
प्राचीन काल में उल्कामुख नाम का एक राजा था राजा और उसकी रानी बड़े ही धार्मिक थे एक समय राजा रानी भद्रशीला नदी के किनारे सत्यनारायण भगवान की कथा सुन रहे थे वही एक बनिया भी आ पहुंचा उसने रत्नो से भरी अपनी नौका को एक किनारे पर लगा दिया और खुद भी पूजा की जगह बैठ गया!
वहाँ का चमत्कार देख उसने राजा को इसके बारे में पूछा राजा ने बताया की हम विष्णु भगवान का पूजन कर रहे है यह व्रत सभी मनोकामनाएं पुराण करने वाला है राजा के वचन सुन और प्रशाद लेकर बनिया अपने घर चला गया घर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी से व्रत के बारे में बताया और मैं भी संतान होने पर यह व्रत करूँगा उसकी पत्नी का नाम लीलावती था| सत्यदेव की कृपा से वह कुछ ही दिनों बाद गर्भवती हो गयी और दस महीने पुरे होने पर उसने एक कन्या को जन्म दिया|
कन्या का नाम कलावती रखा गया और और वह चन्द्रमा की कलाओ के सामान नित्यप्रति बढ़ने लगी एक अवसर पाकर लीलावती ने अपने पति को सत्यनारायण भगवान का व्रत करने की बात याद करवाई उसने कहा मैं यह व्रत कन्या कह विवाह के समय करूँगा यह कहकर बनिया अपने कारोबार में लग गया जब वह कन्या विवाह के योग्य हुई तो उसने दूतो द्वारा खोज करवाकर कंचन कुंड नगर के एक बनिए के सुन्दर सुशिल गुणवान बालक के साथ विवाह कर दिया|
फिर भी बनिए ने सत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया इस कारण श्री सत्यनारायण भगवान अप्रसन हो गए कुछ दिनों बाद बनिया अपने दामाद को साथ लेकर समुन्द्र के किनारे रपुसार पुर में व्यापर करने लगा|
रपुसार पुर के राजा चंद्रकेतु के खजाने से चोरो ने सारा धन चुरा लिया राजा के सिपाही चोरो का पीछा कर रहे थे चोरो ने जब देखा की सिपाहियों से बचना कठिन है तो उन्होंने राजकोष से चुराया हुआ धन एक जगह फेंक दिया और खुद भाग गए वही बनिए का डेरा था सिपाही चोरो को ढूंढ़ते हुए उसी जगह पहुँच गए और उन्होंने दोनों बनियो को चोर समझकर पकड़ लिया राजा ने दोनों को जेल में डालने का आदेश दे दिया और उनका धन कोष में जमा कर दिया श्री सत्यदेव के कोप से लीलावती और कलावती दोनों बड़े दुःख से जीवन व्यतीत कर रही थी|
एक दिन कलावती भूख प्यास से व्याकुल होकर मंदिर में चली गयी वहाँ पर श्री सत्यनारायण भगवान की कथा हो रही थी वही बैठकर उसने कथा सुनी और प्रसाद लेकर घर पहुंची माता के देरी का कारण पूछने पर उसने यह सब बात कह दी उसकी बात सुनकर लीलावती को अपने पति की भूली बात याद आ गयी और उसने श्री सत्यदेव के व्रत का निश्चय किया उसने अपने बंदु बांधो को बुलाकर श्रद्धापूर्वक कथा सुनी और विनर्म भाव से प्राथना की मेरे पति ने जो संकल्प करके जो आपका व्रत नहीं किया उसी से आप अप्रसन हुए थे कृपा करके उनका अपराध शमा करे लीलावती की प्राथना से श्री सत्यदेव प्रसन हो गए|
उसी रात श्री सत्यदेव ने राजा चंद्रकेतु को स्वपन में दर्शन देकर की प्रातकाल होते ही दोनों बनियो को जेल से छोड़ दो और उनका सभी धन उन्हें लोटा दो वर्ण पुत्र पुत्र समेत तुम्हारा राज्य नष्ट हो जायेगा इतना कहकर सत्यदेव अंतरध्यान हो गए और राजा ने भी सवेरा होते ही दोनों बनियो को मुक्ति का आदेश दे दिया और साथ ही उनका धन उन्हें लोटा दिया और मानपूर्वक उन्हें विदा किया दोनों बनिए आनंदित होकर अपनी नौका लेकर अपने घर चल पड़े तभी श्री सत्यनारायण भगवान सन्यासी के भेष में उनके समीप आये और बोले तुम्हारी नौका में क्या है|
बनिए ने हस्ते हुए उतर दिया नौका में तो फूल पतों के सिवाए कुछ भी नहीं है यह सुनकर दंडी स्वामी ने कहा तुम्हारा वचन सत्य हो स्वामी के चले जाने पर बनिए ने देखा की नौका तो हलकी हो गयी है उसे बड़ा आशर्य हुआ और देखा बेहोश होकर गिर पड़ा उसकी नौका में हर जगह फूल पत्ते ही थे परन्तु दामाद ने कहा इस प्रकार हड़बड़ाने से काम नहीं चलेगा हमें उसी दंडी स्वामी के पास जाना चाहिए यह उसी की करामात है उन्हें चलकर प्राथना करेंगे तो फिर से वैसा ही हो जायेगा दामाद की बात मानकर बनिया दंडी स्वामी पास पहुंचा और उनके चरणों में गिर पड़ा और बार बार उनसे शमा मांगने लगा|
उनकी इसी प्राथना से भगवान ने प्रसन होकर उन्हें इच्छित वरदान दिया और स्वयं उसी जगह से अंतर्ध्यान हो गए बनियो ने नाव के पास जाकर देखा तो वह धन रत्नो से भरपूर थी तब उन्होंने श्री सत्यदेव भगवान का पूजन किया और कथा सुनी फिर वह घर की और चल दिए अपने नगर के समीप पहुँच कर बनिए ने लीलावती के पास अपने आने का समाचार भेजा लीलावती उस समय सत्यनारायण भगवान की कथा सुन रही थी|
उसने अपनी पुत्री कलावती से कहा की तुम्हारे पति और पिता आ गए है मैं उनके स्वागत के लिए चलती हूँ तुम भी प्रशाद लेकर शीघ्र ही नदी तट पर पहुँच जाना कलावती प्रसन्ता के कारण इतनी विमुक्त हो गयी की वह कथा का प्रसाद लेना ही भूल गयी और तुरंत ही नदी के तट की और दौड़ गयी जैसे ही वह नदी के किनारे पहुंची उसके पति समेत नौका जल में डूब गयी वह देख बनिया हाहाकार करके छाती पीटने लगा लीलावती भी दामाद के शोक में विलाप करने लगी और कलावती अपने पति के खड़ाऊ लेकर सती होने को उद्यत हुई तभी आकाशवाणी हुई हे|
वनी! तेरी पुत्री सत्यनारायण भगवान के प्रसाद का अनादर करके पति से मिलने दौड़ी आयी है यदि वह प्रसाद लेकर फिर आएगी तो उसका पति जी उठेगा यह सुन कलावती घर की और दौड़ गयी और सत्यनारायण भगवान का प्रसाद लेकर नदी के किनारे आयी और क्या देखती है उसके पति समेत नौका जल पर तैर रही है यह देख बनिया भी प्रसन हो गया और अपने घर पहुँच गया वह जब तक जीवित रहा तब तक सत्यनारायण भगवान का व्रत करता रहा तथा श्रद्धापूर्वक कथा को सुनता रहा उसके पश्चात सूत जी बोले की एक समय तुडवत राजा शिकार खेलने के लिए वन में गया हुआ था|
वहाँ उसने देखा एक बरगद के पेड़ के नीचे बहुत से गोप गण इकठे होकर सत्यनारायण भगवान की कथा सुन रहे है राजा ने न तो सत्यनारायण भगवान को नमस्कार किया और न ही पूजन के पास गया गोप गण स्वयं ही प्रसाद लेकर उसके पास गए और प्रसाद राजा के सामने रख दिया और राजा ने प्रशाद की कुछ परवाह नहीं की और अपने महल की और चला गया महल के दवार पर पहुँचते ही राजा को मालूम हुआ की उसके पुत्र पौत्र और धन सम्पति सब नष्ट हो गए है उसे वन की घटना स्मरण हो आयी और उसने विचार किया की श्री सत्यदेव के प्रसाद का निरादर करने के कारण मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ|
यह सोचकर राजा पुनः वन में दौड़ा गया और सब गोप गणो के साथ मिलकर श्री सत्यदेव भगवान का पूजन करके प्रसाद ग्रहण किया इसके बाद वह जब घर पर लोट आया तोह उसके मृत पुत्र पौत्र आदि सब जीवित हो उठे और नष्ट हुई सम्पति भी वापिस मिल गयी तबसे राजा समय समय पर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजन करता रहा!
इस प्रकार सत्यनारायण भगवान की कथा समाप्त हुई!
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