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योग क्या है और योग के प्रकार
आइये आज इस लेख में जानते हैं कि योग क्या है, इसके प्रकार कोनसे हैं और आज के युग में इसकी प्रासंगिकता क्या है। योग एक सम्यक जीवन का विज्ञान है (science or right living) और इसीलिए हमे इसे अपनी दिनचर्या का एक अंग बनाना चाहिए। योग शब्द का मतलब होता है – एकत्व या ऐक्य जिसे इंग्लिश में कहेंगे oneness या unity, और यह बना है संस्कृत धातु ‘युज्’ से बना है, जिसका अर्थ होता है जोड़ना। इस ‘जोड़ने’ को अगर आध्यात्मिक शब्दावली में समझें तो इसे हम व्यष्टि चेतना (individual consciousness) और समष्टि चेतना (universal consciousness) का मिलन कहेंगे। किन्तु अगर इसे व्यावहारिक स्तर पर देखा जाये तो योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। योग का नियमित अभ्यास हमारे व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक, प्राणिक और अतीन्द्रिय, सभी पहलुओं को प्रभावित करता है।
योग के प्रकार
योग की कई शाखाएं हैं – राज योग, भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग, हठ योग, मन्त्र योग, कुंडलीनी योग आदि। हर योग के अपने विशिष्ट तरीके और मार्ग होते हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने अंतर्मन को संयमित करता है और अपनी चेतना को विकसित करता है। इनमे से प्रथम चार मुख्या हैं – ज्ञान, कर्म, भक्ति और राज योग। हर व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व एवं निजी आवश्यकता के अनुसार इनमे से स्वयं के लिए उपयुक्त योग का चयन कर लेना चाहिए।
कर्म योग निःस्वार्थ सेवा का एक तरीका है। अगर आप सेवा भावी हैं और आप अपने आप को निस्वार्थ सेवा के पथ पर लगा देने में अपने आपको सक्षम मानते हैं, बिना किसी फल की इच्छा के तो आपके लिए कर्म योग सर्वोत्तम है। ऐसे में आप का प्रत्येक कार्य इस भाव से करना होगा मानो कि आप तो मात्र भगवान के हाथ के एक उपकरण हैं और उसके लिए ही सभी कार्य कर रहें हैं। एक कर्मयोगी सारे जगत को ईश्वर के स्वरुप में देखता है और मानव सेवा में अपने को पूर्ण अर्पित करके अपने चित्त को शुद्ध करता है।
अगर आपका व्यक्तित्व भावना प्रधान है, आप के भीतर निःस्वार्थ प्रेम का भाव है तो आपके लिए भक्ति योग उचित मार्ग है। भक्ति योग भगवान की पूर्ण भक्ति का मार्ग है। जो भक्ति मार्ग का अनुगमन करते हैं, उन्हें जप, भागवत या रामायण का स्वाध्याय करना चाहिए। स्मरण, श्रवण, वंदन, कीर्तन, अर्चना, पाद-सेवन, सख्या, दास्य और आत्म-निवेदन के द्वारा, जिसे नवधा भक्ति कहा जाता है, एक भक्त उच्च कोटि की भक्ति को प्राप्त कर सकता है।
राजयोग सभी योगों का राजा है। इसका सीधा संबंध मन से है। वह जो रहस्यवाद के माध्यम से भगवान के साथ मिलन चाहता है उसे राज-योगी कहा जाता है। एक राजयोगी आठ सीढ़ियों से होकर क्रमशः सीढ़ी पर चढ़ता है। प्रारम्भ में वह याम नियम का पालन करता है। तत्पश्चात वह आसन स्थिर बनाता है। तब वह प्राणायाम के द्वारा मन को स्थिर बनता है और नाड़ियों का संशोधन करता है। प्रत्याहार, धारणा, तथा ध्यान का अभ्यास कर वह समाधी प्राप्त करता है।
ज्ञान योग ज्ञान का मार्ग है। वह जो दर्शन और जिज्ञासा के माध्यम से खुद को भगवान के साथ एकजुट करना चाहता है उसे ज्ञान-योगी कहा जाता है। जो ज्ञानमार्ग अथवा वेदांत का अवलम्बन करते हैं, उन्हें साधना-चतुष्टय – विवेक, वैराग्य, शट्सम्पत्त तथा मुमुक्षत्व से युक्त होना चाहिए। तब वे ब्रम्हनिष्ठ गुरु के पास जाते हैं एवं उनसे श्रुतियों का श्रवण करते हैं। श्रवण, मनन, तथा निदिध्यासन के अभ्यास से वे आत्म -साक्षात्कार प्राप्त करते हैं।
योग की प्रासंगिकता आज के युग में
आज के तनाव ग्रसित और कोलाहलपूर्ण जीवन में लोगों के योग स्वास्थ्य रक्षा एवं पारिवारिक मंगल का एक साधन बनकर आया है. ऑफिस में लम्बे समय बैठने और अपनी टेबल पर लगातार झुककर अपना दायित्व निभाने से उत्पन्न हुई समस्याओं से योग के अभ्यास आसानी से मिटा डालते हैं. बढ़ते हुए काम और घटते हुए अवकाश से जो विश्राम की कमी हो जाती है, उन्हें शिथिलीकरण की तकनीकों से पूरा किया जा सकता है. हर वक़्त मोबाइल में उलझे हुए व्यक्ति और व्यावहारिक आप धापी में पड़े व्यक्ति को भी योग रहत पहुँचता है और भविष्य में आ सकने वाली कई समस्याओं से मुक्ति दिलाता है.
योग को मात्र एक शारीरिक व्यायाम नहीं समझाना चाहिए. यह तो एक नविन जीवन-पद्धति को स्थापित करने का एक प्रभावकारी साधन है. योग तो एक ऐसी जीवन शैली है जिसमे जीवन की बाह्य एवं आतंरिक वास्तविकताओं का सुन्दर संयोग होता है, और जिसे बुद्धि से नहीं समझा जा सकता है. योग का अभ्यास और इसकी अनुभूति ही इसकी सही समझ लाती है और तब इसका महत्त्व समझ आने लगता है.
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