यज्ञ प्रार्थना (हवन प्रार्थना) – पूजनीय प्रभो हमारे
यज्ञ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- “आहुति, चढ़ावा” और यज्ञ से तात्पर्य है – ‘त्याग, बलिदान, शुभ कर्म’। इस पद्धति में हम अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित करते हैं। इससे वायु का शोधन होता है और इस पृथ्वी पर सबको आरोग्यवर्धक साँस लेने का अवसर मिलता है। हवन हुए पदार्थ वायुभूत होकर प्राणिमात्र को प्राप्त होते हैं और उनके स्वास्थ्यवर्धन, रोग निवारण में सहायक होते हैं। यज्ञ काल में उच्चरित वेद मंत्रों की पुनीत शब्द ध्वनि आकाश में व्याप्त होकर लोगों के अंतःकरण को सात्विक एवं शुद्ध बनाती है। इस प्रकार थोड़े ही खर्च एवं प्रयत्न से हमारे द्वारा संसार की बड़ी सेवा बन पड़ती है। यज्ञ के समापन पर जो प्रार्थना की जाती है उसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहें हैं। यहाँ पढ़िए – यज्ञ प्रार्थना – Yagya Prarthana Lyrics – पूजनीय प्रभो हमारे भाव उज्जवल कीजिये –
यज्ञ प्रार्थना – Yagya Prarthana
पूजनीय प्रभो हमारे,भाव उज्जवल कीजिये ।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ॥ १॥
वेद की बोलें ऋचाएं,सत्य को धारण करें ।
हर्ष में हो मग्न सारे, शोक-सागर से तरें ॥ २॥
अश्व्मेधादिक रचायें,यज्ञ पर-उपकार को ।
धर्मं- मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ॥ ३॥
नित्य श्रद्धा-भक्ति से,यज्ञादि हम करते रहें ।
रोग-पीड़ित विश्व के, संताप सब हरतें रहें ॥ ४॥
भावना मिट जाये मन से,पाप अत्याचार की ।
कामनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ॥ ५॥
लाभकारी हो हवन,हर जीवधारी के लिए ।
वायु जल सर्वत्र हों, शुभ गंध को धारण किये ॥ ६॥
स्वार्थ-भाव मिटे हमारा,प्रेम-पथ विस्तार हो ।
‘इदं न मम’ का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो ॥ ७॥
प्रेमरस में मग्न होकर,वंदना हम कर रहे ।
‘नाथ’ करुणारूप ! करुणा, आपकी सब पर रहे ॥ ८॥
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