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मां चंद्रघंटा की कथा, आरती व मंत्र
मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप हैं और उनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। माँ चंद्रघंटा का रूप अत्यंत कल्याणकारी और शांतिदायक है। इनके माथे पर अर्ध चंद्रमा का आकार चिन्हित होता है, जिस कारण इन्हें मां चंद्रघंटा कहा जाता है। मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण की तरह चमकीला है। माँ के 10 हाथ हैं जोकि खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इनकी पूजा करने से न सिर्फ घर पर सुख-समृद्धि आती है बल्कि सभी रोगों से मुक्ति भी मिलती है। माता की भावना और विधि विधान से की गयी पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। यहां हम आपके लिए लाएं हैं मां चंद्रघंटा की कथा, आरती व मंत्र।
मां चंद्रघंटा की कथा
मां चंद्रघंटा अपने पूर्व जन्म में देवी सती के नाम से जानी जाती थीं। इस अवतार में, उनका विवाह भगवान शिव से हुआ और फिर बाद में जब उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया तो उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। फिर उन्होंने पहाड़ों की बेटी पार्वती के रूप में फिर से जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या और निरंतर समर्पण को देखते हुए भगवान शिव प्रसन्न हुए और उनसे विवाह करने को तैयार हो गए। शादी की तैयारियां जोरों पर थीं और हर कोई बहुत खुश था। उनके विवाह के दिन, भगवान शिव एक विशाल, लेकिन ऐसी बारात के साथ पहुंचे जिसमे भूत, राक्षस, पिशाच आदि सभी बाराती थे। स्वयं भगवान शिव के गले में सर्प की जैसे मालाएं थी और उनका पूरा शरीर भस्म से सना हुआ था।
भगवान शिव के ऐसे भयानक रूप को देखकर मां मैना सहित मां पार्वती के रिश्तेदार सहम से गए और लगभग सभी लोग भय से बेहोश हो गए। माँ पार्वती चिंतित हो गईं और ऐसी स्थिति में कोई भी असामान्य स्थिति से बचने के लिए उन्होंने तुरंत ही माँ चंद्रघंटा का रूप धारण कर लिया जो दिखने में बहुत ही डरावना और विकराल था। यह एक भयावह दृश्य था और वह स्वयं भगवान शिव की तरह ही भयानक लग रही थी। मां चंद्रघंटा का रंग सुनहरा हो गया और अब उनकी दस भुजाएं हो गईं। उनके दो हाथों में त्रिशूल और एक हाथ में कमंडल था। इसके अलावा, माँ चंद्रघंटा एक गदा, एक धनुष और तीर, एक तलवार, एक घंटा, और एक कमल धारण किये हुए थीं।
इस भयानक रूप में, माँ चंद्रघंटा भगवान शिव के पास पहुंची और उन्हें एक सूंदर वार का रूप धारण करने के लिए मना लिया। भगवान शिव सहमत हो गए और खुद को एक सुंदर राजकुमार में बदल लिया। अंत में, भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह सभी प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों के साथ हुआ।
पौराणिक कथाओं की एक अन्य माँ चंद्रघंटा की कथा के अनुसार, जब राक्षस महिषासुर के आतंक ने स्वर्ग में उत्पात मचाना शुरू कर दिया था, तब मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का रूप धारण किया था। महिषासुर स्वर्ग के देवताओं के साथ भयंकर युद्ध कर रहा था। क्योंकि महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त कर स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था। देवता चिंतित हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति ने उनकी बात सुनी और वे बहुत क्रोधित हुए। कहा जाता है कि इसी क्रोध के कारण त्रिदेवों के मुख से एक ऊर्जा निकली और उसी ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं, जिनका नाम है मां चंद्रघंटा। भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा और सूर्य ने अपना तेज, तलवार और सिंह उस देवी को दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और स्वर्ग की रक्षा की।
मां चंद्रघंटा की आरती
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित जो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।
मां चंद्रघंटा मंत्र
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
मां चंद्रघंटा प्रार्थना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
ध्यान के लिए माँ चंद्रघंटा मंत्र
न्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
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