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खेचरी मुद्रा क्या है?
खेचरी मुद्रा योग की एक गहरी साधना मानी जाती है। इसमें जीभ को मोड़कर धीरे-धीरे तालु के ऊपरी हिस्से से लगाया जाता है। प्राचीन योग परंपराओं में कहा गया है कि इस मुद्रा से मन स्थिर होता है, इंद्रियों पर नियंत्रण आता है और साधक भीतर की ओर केंद्रित हो पाता है।
अष्टांग योग में खेचरी मुद्रा को ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास के लिए विशेष स्थान दिया गया है। लगातार अभ्यास से यह शरीर और मन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
खेचरी मुद्रा कैसे करें (सुरक्षित और धीरे-धीरे)
खेचरी मुद्रा का अभ्यास करते समय सबसे ज़रूरी बात धीरे-धीरे प्रगति और धैर्य है। इस मुद्रा में जीभ को धीरे-धीरे पीछे की ओर मोड़कर तालु से जोड़ते हैं और समय के साथ उसे और गहराई तक ले जाने का अभ्यास किया जाता है।
स्टेप-बाय-स्टेप अभ्यास
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आराम से सीधी रीढ़ के साथ ध्यान मुद्रा में बैठें।
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कुछ गहरी और शांत श्वास लें, मन को स्थिर होने दें।
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जीभ को धीरे-धीरे ऊपर की ओर मोड़ें और ऊपरी तालु से लगाएँ।
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जब यह सहज लगे, जीभ को थोड़ा-थोड़ा पीछे की ओर सरकाने का अभ्यास करें।
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धीरे-धीरे प्रयास करें कि जीभ तालु के पीछे वाले हिस्से तक पहुँच सके।
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अभ्यास बढ़ने पर जीभ गले के पिछले भाग (उवुला क्षेत्र) के पास तक पहुँचने लगती है।
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इस अवस्था में ध्यान या प्राणायाम करें — श्वास स्वाभाविक और शांत रहने दें।
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यदि दर्द, जलन या घुटन महसूस हो — तुरंत अभ्यास रोक दें और अगले दिन फिर धीरे से प्रयास करें।
सुरक्षित अभ्यास के आवश्यक नियम
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जल्दबाज़ी न करें — प्रगति स्वाभाविक रूप से होने दें।
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जीभ को ज़बरदस्ती पीछे न मोड़ें।
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जीभ काटने या खींचने जैसी जोखिमभरी तकनीकें स्वयं न करें।
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अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में ही उन्नत स्तर का अभ्यास आगे बढ़ाएँ।
खेचरी मुद्रा के लाभ (Khechari Mudra Benefits)
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मन शांत रहता है और ध्यान गहरा होता है।
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बेचैनी, तनाव और चिड़चिड़ापन कम करने में सहायक।
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इंद्रियों पर नियंत्रण आने में मदद मिलती है।
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नींद और मानसिक स्थिरता में सुधार देखा गया है।
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ऊर्जा संतुलित होती है और प्राणशक्ति सक्रिय महसूस होती है।
खेचरी मुद्रा द्वारा “अमृत पान” का अनुभव (पारंपरिक योग दृष्टि)
योग शास्त्रों में बताया गया है कि जब जीभ तालु से जुड़ी रहती है और अभ्यास लगातार किया जाता है, तो कपाल और कुछ सूक्ष्म ग्रंथियों में उद्दीपन होता है।
कहा जाता है कि इससे “अमृत” जैसा दिव्य स्राव अनुभव होने लगता है — साधक को शांति, आनंद और भीतर गहराई तक सुकून महसूस होता है।
इस अवस्था तक पहुंचने में समय और वर्षों का अभ्यास भी लग सकता है, लेकिन पारंपरिक योग में इसे आध्यात्मिक प्रगति और संयम का एक महत्वपूर्ण चरण माना गया है।
खेचरी मुद्रा की सावधानियां
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शुरुआत हमेशा साधारण समय से करें।
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जीभ पर किसी भी तरह का जबरदस्ती दबाव न डालें।
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अगर चक्कर, दर्द या असहजता लगे तो अभ्यास रोक दें।
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बेहतर है कि गुरु या अनुभवी शिक्षक के मार्गदर्शन में सीखा जाए।
खेचरी मुद्रा के नुकसान (Khechari Mudra Side Effects)
ज्यादातर लोगों के लिए यह सुरक्षित होती है, लेकिन गलत तरीके से करने पर:
• जीभ में दर्द या खिंचाव
• मुंह में घाव
• सिरदर्द या ज्यादा तनाव
इसलिए सावधानी के साथ और धीरे-धीरे अभ्यास करना जरूरी है।
निष्कर्ष (आध्यात्मिक महत्व)
विशेषता — निरंतर अभ्यास करते रहने से जीभ जब लंबी हो जाती है, तब उसे नासिका रन्ध्रों में प्रवेश कराया जा सकता है। इस प्रकार ध्यान लगाने से कपाल मार्ग एवं बिंदु विसर्ग से संबंधित कुछ ग्रंथियों में उद्दीपन होता है, जिसके परिणामस्वरूप अमृत का स्राव आरंभ होता है। उसी अमृत के स्राव होते समय एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक अनुभव होता है — और उसी अनुभव से सिद्धि तथा समाधि में तेजी से प्रगति मानी जाती है।
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