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कम्प्यूटर, तनाव और दृष्टि दोषों के लिए योगाभ्यास
कम्प्यूटर का उपयोग करने वाले लोगों के लिए इस लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है। आज कम्प्यूटर का उपयोग सम्पूर्ण संसार में आँखों में दर्द और तनाव का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। प्रतिदिन छः से आठ घण्टे तक कम्प्यूटर का उपयोग करने वालों में नब्बे प्रतिशत लोग कम्प्यूटर जनित स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हैं।
कम्प्यूटर जनित दृष्टि दोष
लम्बे समय तक कम्प्यूटर का उपयोग करने से अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें नेत्र की समस्याएं प्रमुख हैं। कम्प्यूटर पर लम्बे समय तक अविराम कार्य करने से नेत्रों में तनाव उत्पन्न होता है। । कम्प्यूटर पर निरन्तर टकटकी लगाए रहने से पलक झपकाने की दर में कमी और कार्यस्थल के वातावरण में आर्द्रता की कमी इस तनाव को बढ़ाने का ही कार्य करती है।
कम्प्यूटर के उपयोग से सम्बद्ध नेत्र एवं दृष्टि की सभी समस्याओं को कम्प्यूटर जनित दृष्टि दोष (कम्प्यूटर विज़न सिन्ड्रोम या संक्षेप में सी. वी. एस.) की संज्ञा दी जाती है। ये समस्याएँ स्थायी अथवा अस्थायी हो सकती हैं। सी. वी. एस. के सामान्य लक्षण हैं – सम्पूर्ण नेत्र में व्याप्त हल्का दर्द, सरदर्द, प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता, धुंधली या द्वि-दृष्टि, नेत्रों में जलन, नेत्रों में पानी आना, नेत्र प्रदाह, नेत्र-खाज, नेत्र-शुष्कता, आँखों के सामने काले धब्बे आना, पढ़ने की गति का धीमापन, नेत्र-गोलक में दर्द होना, दूर-दृष्टि एवं निकट दृष्टि का बदतर होना, दृष्टि-वैषम्य तथा गर्दन और पीठ में दर्द।
अश्रु-परत द्वारा आँखों की रक्षा
सामान्यत: आँखें एक अश्रु-परत द्वारा संरक्षित रहती हैं, जो कॉर्निया को आच्छादित किये रहता है। यह अश्रु-परत नेत्र-संक्रमण से आँखों की रक्षा करती है तथा उन्हें पोषक तत्त्वों एवं ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में सहायक होती है। एक सामान्य अश्रु-परत 5 से 8 सेकेण्ड तक बरकरार रहती है और हर बार पलक झपकने के साथ यह टूटती और पुन: निर्मित होती है। कॉर्निया की सतह पर जितनी देर तक अश्रु-परत अक्षत बनी रहती है, उसे ‘अश्रु-परत विघटन समय’ कहा जाता है। अश्रु-परत के विघटन का समय जितना लम्बा होगा, आँखें उतनी ही अधिक सुरक्षित रहेंगी।
नेत्र-पेशियों का शिथिलीकरण ही नेत्र चिकित्सा का आधार
विभिन्न दिशाओं, दूरियों एवं प्रकाश की तीव्रताओं में स्पष्ट रूप से देखने की क्षमता नेत्र-पेशियों के समन्वय पर निर्भर करती है। अन्य पेशियों के समान नेत्र-पेशियाँ भी तनाव से प्रभावित होती तथा अति संकुचित रहने लगती हैं। इससे नेत्र-तनाव उत्पन्न होता है, जो कि अनेक नेत्र-समस्याओं का कारण बनता है। अतः शिथिलीकरण ही यौगिक नेत्र चिकित्सा की कुंजी और आधार है। योग में बताये नेत्र अभ्यासों एवं नेत्र-पेशियों के शिथिलीकरण से नेत्र-तनाव में कमी आती है तथा नेत्र-पेशियों की शक्ति में वृद्धि भी होती है।
दृष्टि की समस्याओं का मन के तनाव से सम्बन्ध
यौगिक उपचार में व्यक्तित्व के समस्त आयामों को देखा जाता है, जैसे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक। वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह सिद्ध किया जा चूका है कि दृष्टि की समस्याएँ मुख्यत: मन से सम्बन्धित होती हैं। यदि मन शान्त है, तो नेत्र भी तनावमुक्त रहेंगे, पर यदि मन तनाव में है, तो फिर कोई भी उपाय नेत्रों को विश्राम नहीं दिला सकता। तो यह कहा जा सकता है कि मन को शान्त करने वाली किसी भी विधि से नेत्रों को भी अवश्य लाभ मिलेगा। मनोनियन्त्रण योग का एक प्रमुख ध्येय होने के कारण, यह अनेक रोगों के उपचार की कुंजी है जिसमें नेत्र-रोग भी शामिल हैं।
आंखों के स्वास्थय लिए योग व एक्सरसाइज़
नेत्रों के अच्छे स्वास्थय के लिए प्रथम अभ्यासों में दाएँ-बाएँ देखना, तिरछा देखना, दृष्टि को वृत्ताकार घुमाना, दृष्टि को ऊपर-नीचे ले जाना है। प्रत्येक अभ्यास के बाद हथेलियों को आपस में रगड़कर गर्म हथेलियों को आँखों पर अवश्य रखें। वैसे हम हथेलियों को आपस में रगड़ने का अभ्यास अलग से भी कर सकते हैं और कई प्रकार से कर सकते हैं, जैसे – सामान्य रूप से; नेत्रों पर हथेलियों से दबाव डालते हुए; श्वसन के साथ एवं भ्रामरी प्राणायाम के साथ। इन नेत्र-अभ्यासों के बाद दृष्टि को केन्द्रित करने के अभ्यास करने चाहिए, जैसे नासिकाग्र दृष्टि एवं भ्रूमध्य दृष्टि के अभ्यास। दैनिक साधना के अन्य अभ्यासों में ॐ का उच्चारण, हथेलियों से आँखों को सेकना, कपालभाति एवं जल नेति जैसे शुद्धिकरण के अभ्यास, प्रार्थना, आसन, प्राणायाम, योगनिद्रा एवं ध्यान को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
अभ्यास के समय बार-बार पलकें झपकायें, जिससे स्वस्थ नेत्रों के लिए आवश्यक अश्रु-परत कायम रह सके। साथ ही साथ बीच-बीच में दूरस्थ वस्तुओं पर दृष्टि टिकाने का अभ्यास भी करें, जिसका उद्देश्य नेत्र-गोलक-पेशियों को आराम प्रदान करना है। नेत्रों में पानी के छींटे देने का भी अभ्यास भी करें। अपने कार्य-स्थल में भी नेत्र अभ्यासों को करते रहने की आदत डाल लेनी चाहिए।
दृष्टि की समस्याओं के लिए आसन व प्राणायाम
आसनों के अभ्यास में वज्रासन, शशांकासन, उष्ट्रासन, शरीर सञ्चालन (सूक्ष्म व्यायाम), मार्जारि आसन, उत्तानपादासन, मर्कटासन, साइकिल चलाना, नौकासन, भुजंगासन, हस्त पादासन एवं बद्ध हस्तासन को सम्मिलित किया जाना चाहिए। प्राणायाम में भ्रामरी, शीतली एवं शीतकारी के अभ्यास करने चाहिए। प्रतिदिन यौगिक श्वसन का अभ्यास भी अगर शामिल कर लिया जाये तो अच्छा रहेगा। ललाट की पेशियों को आराम पहुँचाने हेतु गर्म हथेलियों को माथे पर रखने का अभ्यास किया जाना चाहिए।
नेत्र स्वास्थ्य एवं त्राटक का अभ्यास
एक और अभ्यास जो कि नेत्रों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए अगर आप शामिल करें तो वह है त्राटक। दृष्टि को केन्द्रित करने एवं त्राटक के अभ्यासों से नेत्र-पेशियाँ सशक्त होने के साथ-साथ शिथिल भी होती हैं, जिससे नेत्रों की दूर तथा समीप देखने की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। गर्म हथेलियों का स्पर्श, जल के छींटे के अभ्यास भी नेत्र-पेशियों को शिथिल बनाते हैं।
अगर उपरोक्त दिए गए अभ्यासों को आप नियमित रूप से करेंगे तो ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आप पूरे दिन तरो-ताजा रहेंगे एवं ऊर्जा-युक्त अनुभव करेंगे। आपको शारीरिक एवं भावनात्मक तन्दुरुस्ती का निश्चित ही अनुभव होगा। सरदर्द, पीठदर्द, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना एवं अवसाद जैसी व्यक्तिगत समस्याओं का पूर्णतः निवारण होगा। थकावट का अनुभव किए बगैर कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होगी।
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